Book Title: Jain Syadvadamuktawali Author(s): Buddhisagar Publisher: Vadilal Vakhatchand Zaveri View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होय एम लागे छे तेथी स्वरचित ग्रंथमां गुरुचारित्रसागर आम लखे छ:-पदाच धर्म गुरू पण होष ते शानी बाणे. यशस्वत्सागरमणिनी न्याय तथा काव्यना विषचमी विद्ता अपूर्व लागे छे ते आग्रंथ जोनारने मालुम पडझे. स्पाबाद मुक्तावलीनी टीका छे के नहि ते जणायुं नयी. कोइ आ अंथनी टीका रचे तो धन्यमदने पात्र थशे .. पनसागरजीमणि के जे न्यायना विषयमा विद्वान् थयाते पण सागर शाखामां थया. तेमणे युक्ति प्रकाश नामनो न्याय ग्रंथ रच्यो छे. भोजसागरगणि नामना विद्वान यया तेमणे उपाध्याय श्री यशोविजयनीकृत द्रव्य गुण पर्यायना रास उपर संस्कृत टीका रची छे. तेनु नाम द्रव्यानुयोगतर्कणा राख्थु छ. आवी रीते सागर शाखामा पण अनेक विद्वानो थया छ. विजय, सागर, विमल,चंद्र, रत्न विगरे तपागच्छनी शाखाओ छे तेपायी हाल सागर, विजय, विमल ए प्रण शाखाओ नजरे पडे डे. सर्व शाखाओ वा गच्छोनो उद्देश तत्व ज्ञानवडे आत्म स्वरुपमा रमणता करी परमात्मपद प्राप्त करतुं ते छे. तेथी कोइने गच्छ, शाखा, उगाश्रयमो मुझावार्नु नथी, गच्छादिक बाबनी ओलखाण पाटे छे. अंतरमा उतरतां ते नथी. मा ग्रंथना श्लोकोनें कोई विस्तारपूर्वक गुजरभाषांतर करशे तो बहु लाभ यवा संभव छे. .. आ ग्रंथमा कोइ ठेकाणे अशुद्ध देखाय तो पंडित मुनिपर्योए जणान के जेथी बीजी आवृश्चिमा मुधारी शकाय.. जा ग्रंथ सुधारवामां कई मति दोष थयो शेप तो पंडित पुरुको सधारणे.. ॐशान्तिः शान्तिः शान्ति लेखक मुनि बुद्धिसागर. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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