Book Title: Jain Syadvadamuktawali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Vadilal Vakhatchand Zaveri
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आत्मानुभूतं तदनात्मभूत मौष्ण्यं यदमेः पुरुषस्तुदंडी ॥ ५१ ॥ तेषां यथा स्यात् सदसद्विचारो युक्तेर्बलात्सैव मतापरीक्षा ॥ एभिस्त्रिभिर्वस्तुसदैव लक्ष्य सत्तार्किकाणां किल वृत्तिरेषा ॥ ५२ ।। अव्यापकत्वं हि तदेकदेश्यतिव्यापकत्वंत्वितरानुवृत्ति ॥ कुत्राप्यवर्तित्वमसंभवस्यैते लक्षणाभासतयात्रयोमी ॥ ५३ ॥ स्वपरव्यवसायिलक्षणं गदितंज्ञानमिदंप्रमाणकृत् ॥ सदसत्सकलार्थसंग्रह ग्रहणाभिज्ञमतोविशेषकृत् ॥ ५४ ॥ यत्सन्निकर्षादिरसंविदात्मा प्रामाण्यशाली न भवेकदाचित् ॥ नार्थान्तरस्यैवमचेतनत्वा
वार्थोवपत्तीकरणत्वमस्य ॥ ५५ ॥ किंस्यात्ममायाः करणत्वमस्य प्रत्यक्षता वापि कथं घटेत ॥
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