Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 02
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
________________
श्रीजिमस्तोत्ररस्नकोशः। २०१ मोहद्वेषि जयश्रिया स लभते श्रेयोऽचिराच्छाश्वतम्॥२४॥ इति युगप्रधानावतारहत्तपागच्छाधिराजश्रीदेवसुन्दरसूरिश्रीज्ञानसागरसूरिश्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्यैः श्रीमुनिमुन्दरमरिभिर्विरचिते जयश्यले श्रीजिनस्तोत्र. रनकोशे प्रथमप्रस्तावे चतुर्विंशतिश्रीजिन
कल्याणकस्तोत्ररत्नमष्टादशम् ।
॥ अर्हम् ॥ जयश्रिया मोहरिपोरवाप्त
त्रिलोकसाम्राज्यरमाभिरामम् । विदेहभूमण्डलमण्डनं श्री.
सीमन्धरं स्वामिनमानुवामि ॥ १ ॥ सृजन्ति यं दिव्यदृशः सुयोगिन
स्तव स्तवं तं विदधे जडोऽप्यहम् । पिबेद् गजो वारिसरस्यजोऽपि वा।
खतुन्दिपूरं समता फले पुनः ॥ २ ॥
Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266