Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 02
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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श्रीजिनस्तोत्ररत्नकोशः। २१७ तदुःखप्रतिकारमाशु कुरु मां सर्वैः सुखैर्योजयन् ॥३६॥ इति श्रीयुगप्रधानवतारहत्तपागच्छाधिराजश्रीदेवमुन्दरसूरिश्रीज्ञानसागरसूरिश्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्यैः श्री. मुनिसुन्दरसूरिभिर्विरचिते जयश्यङ्के श्रीजिनस्तोत्ररत्रकोशे प्रथमप्रस्तावे स्वसांसारिकदुःखप्रकटनदुःखप्रतिकारविज्ञप्तिरूपं
स्तोत्ररत्नं विंशम् ।
॥ अहम् ॥ जयश्रियां सेवधिमेधमान__समग्रलब्धिहदिनीनदीशम् । सुरासुरेन्द्रालिविधीयमान
क्रमाम्बुजोपासनभासमानम् ॥ १॥ सहस्रपत्राद्भुतहेमपट्टे
पद्मासनासीनमदीनमेधम् । जगत्त्रयैकप्रभुताप्रभाव
प्रभाऽभिरामं मुनिराजिराजम् ॥२॥
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