Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 395
________________ ( १६५ १ सोकी नगगविरेय मित ज्ञानप्रकाशो | परमज्योति परमात्मशक्ति धनी भागो || पुण्य-पापतं रहित पुन्य के कारण स्वामी | मर्मो नम अगवन् समन्य नाम कामी ||३३|| रस-सपा पर गन्य रूपमतिहारे । इनके वियय विचित्र भेद सब काननहारे ॥ सब जोवन प्रतिपास प्रत्यकरि है प्रगम्य न । सुमरन गोवर नाहि क जिन तेरो सुमिरन ॥३४॥ तुम प्रताप जिनदेव चितके गोवक नाहीं । निःकिचन भी प्रभू पनेश्वर जानत सर्दि || भये विश्व में पार ष्टिमों पार न पा । जिमपति एम निहारि सन्तजन शरनं ग्रावे ॥१३५॥ नमो नमो नम बगरगुरु शिक्षादायक | निज गुणसेती भई उम्मति महिमा लायक || पाहन-खण्ड पहार पाई ज्यों होत और गिर । त्यों कुल पर्वत माहि मनातन दोघं भूमिपर ||३६|| स्वयं प्रकाशो देव रंन-दिन नहि बाधित । दिवस रात्रि भी तं प्रापको प्रभा प्रकाशित || लाघव गौरव नाहि एकसो एव तिहारो | काल-कलाते रहित प्रभु नमन हमारो ॥३७॥ इह विधि बहु परकार देव सब भक्ति करो हम | आनू वर न कदापि हीन है राग-रहित तुम ॥

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