Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 401
________________ ( १७१ ) कर्मयोगते होत सो, २७ विधिविन सरल स्वभाव ।१०। २८. संसारी जीवन कहो, विग्रह गति निरधार । चार समय पहिले गिनो,२६ एक अविन निहार ।११।' ३०. समय एक दो तीन लो, रहै जीव बिन हार । नाम पनाहारक कहो, भाषी सूत्र मझार ॥१२॥ ३१. सन्मूर्छन गर्भज कहे, उपपावक हू जान । ऐसे जन्म स्थान लख, तीनो भेद प्रमान ॥ १३ ॥ ३२. चौरासीलख योनि यो, सचित शीत अरु उन । ___ सवृत सेतर मिश्र जे, गुनी परस्पर प्रश्न ॥ १४ ।। ३३. जर अंडज पोतज कहे, गर्भ जन्म के थान । ३४. देव नारकी दोय उपपादक जन्म बखान ॥ १५ ॥ ३५. शेष जीव संज्ञा कही, सो सन्मर्छन जान । पांच भेद वपु जानियो, ताको करों बखान ॥ १६ ॥ ३६. प्रौवारिक वैक्रियक पुनि, प्राहारक हू जान । कारमान तेजस सहित, पांच शरीर बखान ।। १७ ॥ ३७. पर परके सूक्षम लखौ, अनुक्रम उक्त बखान । ३८. गुण असंख्य परदेश हैं. तेजस पहिले जान ॥ १८ ॥ ॥छन्द विजया ३६. अतके दोय अनन्त गुरणे नहीं४.घात किसी परकार सुजानो ४१. जीव सबध अनादि कहो४२सव जीवन माहि लखो अनमानो ४३. एक समय इक जीवके चार शरीर सु होतसु सूत्र बखानो । ४४. भोगके योग कहो नहिं अतिम सूत्रमे या विधि रूप दिखानो।

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