Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 425
________________ ( १९५) ३६ तत्वविचार श्रुत अनुसार, प्राज्ञाविचय विचयमनधार । फरमन नाश विचार करेय, अपायविचय सो नाम कहेय ४२। कर्मउदय को जान विचार, नाम विपाकविचय मनधार । तीनहि लोक विचार निहार, सो संस्थानविचय मनधार ४३ या विष धर्मध्यान पद चार, सूत्रमाहि तिन मर्म निहार । ३७ शुक्लध्यान के पाये दोय, धर्मध्यान के पहिले जोय ।४४। होय सफलश्रुतकेलि जान, ३८ पिछिले केवलज्ञानी मान । ३६ पृथक्त्ववितर्क सु पहलो जान,दूजो एक वितर्फ बखाना४५ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती जान, तीजो भेद शुकल को मान । व्युपरतक्रियानिवृति भेव, चौथो शुक्लध्यान लख लेव ।४६। ४० तीनयोगवारेके जान, प्रथम शुक्ल को प्रापति मान । एकयोगवारे के नेम, द्वितीय शुकल प्रापति है तेम ।४७। काययोगवारे के होय, तीजा क्रिय प्रतिपात सु जोय । चौथा शुकल अयोगी जान, यह परिपाटी सूत्र प्रमान ।४। ४१ सवीतर्क वितर्क विचार,सकल सु श्रुतज्ञानी मुनिधार । पहिले यह दो शुकल निहार, ४२ अवीचार दूजे निरधारा४६। ४३ नाम वितर्क सुश्रुत पहिचान,या विध सूत्र कर व्याख्यान ४४ अर्थविचार पदारथ जान, व्यजन वचन शब्द सो मान५. मनवचकाययोग चित्त धरै, इकपदत दूजो अनुसर। कर शब्दतै शब्द विचार, और योगत योग निहार । म्ही संक्रमन जानो वीर, टीका सूत्र लखौ मन धीर ।५१॥ छन्द विजया ४५ मिथ्यादृष्टीत सम्यक्ती लख तात सु देशवतीक कही है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443