Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 432
________________ ( २०२) - माग्दि यदि सम्पदा, अब दोन्ही बावानी पुन्य परणाय, दो बडदान ।। या अन ॥ १० ॥ टोल थपामा बाजना, गत पमागे हाय।। नर यापन नई गोरडी, बतलाई हा कानी भरतार या अन निन पागधग्या ॥ ११ ॥ गुण गुन्दरि म्हाग यीनती, विकमनी म्हारी देह । हम गायर तुम गार हो, अब हम तुम होय गनी दूगदुर दा पदेन । यो व्रत ॥ १२॥ ई गुन्दर पी देह को, को काजी विचार | तुम मायर हम गोरडी, अब हम तुम हो म्यामी भोग विलाम, नया-नया भांग ।। यो अन ॥ १३ ॥ जब मन हट कर राग्गियो तब हरगयो वीपाल । पादिनाय हृदय घरची प्रब टाकाजी गनगम का पवि । ॥ यो अन निन० ॥ १८ ।। सायों की छ: तालटी, गरमा को छभात । गुरू निटा पापणा, गुम बैठ्याजी निर्मल माव, गजम भाव, । यो व्रत० ॥ १५॥ बोल धमाका बाजता, जिन चैत्यालय जाय । प्रदक्षिणा दे गुरु पूछिया म्हाने हो स्थामी देना उपदंग ।। ॥ यो व्रत० ॥ १६ ॥ परत बडी चे कोमली, कीजो भावानुमार । फर्म फटे काया फमे, भार मामीजी श्राका रोग विरोग ।। ॥१७॥

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