Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 431
________________ (२०१) बाबाजी ऐसा न भाखियो, अब होसीजी म्हारो भाग्य विचार, कर्म विचार, यो व्रत नित पाराघस्या ।। ३ ।। पहुपाल राजा मन मे डिगमग्या, सुन पुत्री का बोल । कुष्ट सहित वर हेरियो, अव यो वर मैना जोग, पुत्री जोग ।। यो व्रत० ॥४॥ लगन लिखाई जोशिया, सुगन सरोवर भांति । घरमाला बेगो रची, अब हरख्याजी कोढी भरतार, यो व्रत नित पाराधस्यां ॥५॥ ऐम वहन दोइ उणमणी, जल मे दिवलो जोय।। वाषाजी कूड उपाईयो, तून दोन्ही प्रो बाई कोढी भरतार, , यो व्रत नित आराघस्यां ।। ६ ।। सात सहल्या मिल खेलती, भोली खेलणहार । सात सहेल्या मिल यो कहैं, तून दीन्ही भई दूरा दूर, To ॥ ७ ॥ श्रीपाल राजा पायो परणवा, सातसै कोढीजी साथ । मांडलडो विलख्यो हुयो, विलख्याजी नगरी का लोग, सब परिवार ।। यो व्रत ॥ ॥ पहुपाल राजा हरषिया, वर प्रायोजी मैना जोग । मैना मन हर्षी हुई, अव होसोजी म्हारो भाग्य विचार, होसीजी कर्म विचार ॥ यो व्रत ॥६॥ श्रीपाल राजा परणयो, अब कौंरी हो बाबुल दीनी छै दान। . १-मांडा के लीग (कन्यापक्ष के) २-पुत्री

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