Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 414
________________ ( १६४ ) ६ ॥ शिक्षा र शुद्ध मनार भारत पंच व बिहार । ७ स्त्रीरागकण गरिन् पूर्वभोग चिन्ता न जान, दुष्ट प्रहार करें सुखमान संस्कार तब त्याच विचार, बह्म भावना ॥ बिहार को वर्गे भले पर बुरे, दिपर पांच पंच इन्द्री खरे । तितमे राग भाव तजिदेह, पंच भावना परिग्रह एह ॥ ॥ तोरण- १. हिताविक सब पाप करें नाश इस जगत लें । परभव में संहार, वह निगोद रु तरक ने १० होय वंश दुक्ख इन हितादिक पाते जो चाहौ सुख, त्यानी मत व कायकर ११०१ चौपाई ११ तब जीवन के मंत्री भाव, गुण के लखि प्रानन्द पाद दोन दुखीपर नरुलाधार, धर्म विमुख मध्यस्थ बिहार ॥११॥ १२ लख संसार शरीर स्वभाव, वितन होय विरक्त स्वभाव १३ वरा परमाद योग तं होय, जीवघात तो हिंसा लोट | १२| सच्या सत्य भनेतो झूठ कहो, १५ दिनदोरो दान तो चोटी खातो १३ मैथुन जान का सही, १७ ममताको प्रसार परिग्रह नावो १८ मिया माया निदान वर्जित, सोई व्रती निरशल्य कहानी दो प्रकार रती, १९६र रहित व्रती घर सहित भातो २० प्रनुव्रतधारक डावक है, २१ दिनदेश प्रभात को त्यागी प्रोषण और मार्थिक धारक, भोगें भोग प्रमाण रानी ||

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