Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 420
________________ ( १६० ) २४ सब कर्मप्रकृति को कारण है,सब काल सवर्गी योग बतायो मन वचन काय के योग विशेष ते, सूक्षम कर्म प्रदेश घनेरे । प्रात्मप्रदेश प्रकाश विष, हुयइस्थिति जान सु नेम यहे रे ।२४। सब प्रातम के परदेश विषै, है नन्त अनन्त प्रदेश सुकर्मा । २५ शुभ प्रायु नाम सु गोत्र कहो, अरु पुण्यसु साता वेद सुकर्मा इतने छोड सु पाप कहे, इस सूत्र की रीति लखौ भ्रम हर्ता । अध्याय सु अष्टम पूर्ण भयो,तत्त्वारथ सूत्र सु मोक्ष का कर्ता २५ ॥ इति अष्टमोध्याय ॥ छन्द अशोक पुष्पमंजरी॥ १ प्रालय को निषेध सोई सवर बतायो गुरु, गपति समिति धर्म अनुप्रेक्षा जानिये । बाइस परीषह सहित शुभचारित्र जान, द्वादश प्रकार जैन तप यो बखानिये ।। ऐसे निर्जरा और सवर सु जान योग, योग को निरोध सोई गुप्ति भी प्रमागिये । सुमति के भेद आगे कहत हो सो तौ सुघर, प्रागम के अनुसार सब रीति मानिये ॥१॥ चौपई पृथिवी निरखि गमन जो करै, ईर्ष्या समिति चित्त सो घर। हित मितकारी वचन रसाल, बोले भाषा समिति विशाल ।२। निरख परख आहार जु लेय, समिति एषणा हृदय धरेय । घरै उठावै भूमि निहार, निक्षेपनि प्रादानि विचार ॥३॥ ममता फाय तजे निरधार, ऐसे समिति पांच बिध सार ।

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