Book Title: Jain Stotra Puja Path Sangraha
Author(s): Veer Pustak Bhandar Jaipur
Publisher: Veer Pustak Bhandar Jaipur

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Page 400
________________ ( १७० । लेश्या छ परकार लिये अज्ञान असजित चित्त धरो है । मिथ्यादर्शन और प्रसिद्ध भये इकबीस स्वभाव गिनो है । ७. जीवसु भव्य प्रभव्य लखौ परिनामिक तीन प्रकार भनो है।७ ८.ता परिणामिक लक्षण जान कहो उपयोग सु दोय प्रकारा ज्ञानुपयोग है पाठ प्रकार रु दर्शन भेदमु चार निहारा ।। १०.जीवनि भेदसु दोय लखौ ससारी सिद्ध कहौ निरधारा । ११.मनकर सहित रहित२२त्रस थावरयो दो भेदसु सूत्र मझारा४ १३.पृथ्वी जल अरु तेज सुजानो वायु वनस्पति थावर सारा । १४. पुनि दो इन्द्री प्रादि लखौ त्रस संज्ञक रूपसु वेद निहारा । द्रव्य अरु भाव मिलाय गिनो १५पचइन्द्रोके भेदसु१६दोयबखानो १७इन्द्रीकार निर्वृत्त गिनो उपकर्णको चिह्न प्रघट्य लखानो।५। १८जिनफर देखन जानन होय सु इन्द्री भावको भाव जतानो। १९नाक र नेत्र सु कान कहे अरु जीभ स्पर्श सु इन्द्रो जानो। २० गंभ रु वर्ण सु शब्द कहे रस जान स्पर्शन पाच विषय हैं। २१मनकि समर्थसो शब्द सुजानत२२थावर पांच डकैद्री निचय है दोहा-२३, कृमि पिपीलिका भ्रमर अरु मनुष प्रादि जे जीव। एक एक इन्द्री अधिक धारत ज्ञान सदीय ।।७।। २४. संज्ञो जीव सु जानिये मन कर सहित सु जान । ' २५. विग्रह गतिके भेदको वर्णन करौ बखान ॥ ८ ॥ गतितै गत्यांतर गमन कर्मयोग ते जान । २६. विग्रह विन सूधो गमन जीव अणू पहिचान II सूधो गमन स्वभाव है, टेढो गमन विभाग ।

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