________________
जैन प्रकाश वम्बई, तारीख १७ जनवरी १९४२ शनिवार।
जैन सिद्धान्त बोल संग्रह भाग १, २, ३। प्रथम भाग पृ० सं० ५३० द्वितीय भाग पृ० स० ४७५, तृतीय भाग पृ० स०४८८, संग्रहकर्ता-श्री मैरोदाननीसेठिया,प्रकाशक अगरचंदमैरोदानसेठियानपारमार्थिकसंस्थाबीकानेर।
जैन समान श्रीयुत् सेठियानी के नाम से भलीभाति परिचित है। इस समय वे वयोवृद्ध है। घर का मार पुत्रों को सौप कर वे सदा धर्मकार्यों में रत रहते हैं। यह अन्य उनके लम्बे समय के साधु समागम और शास्त्राभ्यास का परिणाम है। प्राचीन काल में अन्य रचना की एक विशिष्ट पद्धति थी जिसके अनुसारसंख्याक्रम से तत्त्वों का संग्रह किया जाता था। ठाणाग सूत्र आदि इसके नमूने हैं। बोल संग्रह की रचना भी इसी पद्धति पर हुई है। पहिले भाग में पाच संख्यातक के ४२३ तत्त्वों का, दूसरे माग में और सख्या पाले १४० तत्वों का और तीसरे भाग में २०६ । कुल मिलाकर तीनों भागोंमे ७६८ तत्वों का समावेश है। अन्य की सामग्री भागमों से लीगई है मगर भी सेठिया नी ने तत्वों की विशद व्याख्याएं की हैं। इस प्रकार ये अन्य तत्वों की Directory के रूप में बन जाने से जिज्ञासुत्रों के लिए बड़े सहायक सिद्धोंगे। अन्य माग भी शीघ्र प्रकाशित होने वाले हैं। __ इन ग्रन्थों के कद और उपयोगिता को देखते हुए मूल्य बहुत ही कम रखा गया है।यह प्रशसनीय वस्तु है, इसका कारण सेठियानी की धर्मवृत्ति के अतिरिक्त और क्या हो सकता है। वे तत्त्वामिलापीऔर जिज्ञासु है उसीप्रकार अन्य जिशासु बन्धुनों की निशासा तृति के भी उत्सुक हैं। यही कारण है कि उनकी आर्थिक सहायता से बीकानेर में कई पारमार्थिक संस्थाएं पों से चल रही है। उसी के द्वारा यह प्रकाशन कार्यमी होरहा है। इन सभी धर्म प्रवृत्तियों के लिए न समान श्री सेठियानी का ऋणी है और रहेगा। सभी लायबेरियों, सस्थाओं और तत्त्वचिन्तकों के पास ऐसे उपयोगी अन्यों का होना अनिवार्य है। __ स्थानकवासी जैन, अहमदाबाद ता० २२-१-४२
श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, तृतीय भाग । संग्रहका- भैरोदाननी शेठिया । प्रकाशक-श्री शेटियाजन पारमार्थिक संस्था बीकानेर। पाकु पुङ, पृष्ठ संख्या ४६० |
शेठिया जैन ग्रंथमालानु या १०० मुंपुष्प छे तेथी नणाय छेके श्रीशेठियाजीने जैन साहित्यनीवृद्धिमापोतानोश्रमर फालो श्राप्योछेने हजुभापता रहे अमापणे इच्छीतेश्रोन श्रेक श्रेक पुषजैन साहित्यनगीचामासुवासरेटे श्रेमकहनुमोइत्री
श्रीठाणागसूत्रना बोल संग्रह नु वीज पुस्तक प्राप्या बादटुक समय मा ना त्रीचं पुस्तक जैन समावनेनोवामले श्रेयानदनोविषय छाननी मोघवारी पुस्तकमा