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दो शब्द श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह के चौथे भाग की द्वितीयावृत्ति पाठकों के सामने प्रस्तुत है। इसकी प्रथमावृत्ति सवत् १६६६ में प्रकाशित हुई थी। पाठकों को यह बहुत पसन्द आई । इसलिए थोडे ही समय मे इसकी सारी प्रतिया समाप्त हो गई। इस ग्रन्थ की उपयोगिता के कारण इसके प्रति जनता की रुचि इतनी बढी कि हमारे पास इसकी माग बराबर श्राने लगी । जनता की माग को देख कर हमारी भी यह इच्छा हुई कि इसकी द्वितीयावृत्ति शीघ्र ही छपाई जाय किन्तु प्रेस की असुविधा के कारण इसके प्रकाशन मे विलम्ब हुआ है। फिर भी हमारा प्रयत्न चालू था । अाज हम अपने प्रयत्न में सफल हुए है । अतः इसकी द्वितीयावृत्ति पाठको के सामने रखते हुए हमें अानन्द होता है।
'पुस्तक शुद्ध छपे इस बात पर पूरा व्यान रखा गया है फिर भी दृष्टिटोप से तथा प्रेस कर्मचारियों की असावधानी से छपते समय कुछ अशुद्धिया रह गई है इसके लिए पुस्तक में शुद्धिपत्र लगा दिया गया है । अत. पहले उसके अनुसार पुस्तक सुधार कर फिर पढे । इनके सिवाय यदि कोई अशुद्धि आपके व्यान मे आवे तो हम सूचित करने की कृपा करें ताकि ग्रागामी आवृत्ति में सुधार कर दिया जाय।
वर्तमान समय मे कागज, छपाई और अन्य सारा सामान महगा होने के कारण इस द्वितीयावृत्ति की कीमत बढानी पड़ी है। फिर भी ज्ञान प्रचार की दृष्टि से इसकी कीमत लागत मात्र ही रखी गई है। इस कारण से कमीशन आदि नहीं दिया जा सकता है । इससे प्रास रकम फिर मी साहित्य प्रकाशन आदि ज्ञान के काया मे ही लगाई जाती है।
पुस्तक प्रकाशक समिति श्री अगरचन्द भैरोदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था
बीकानेर