Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 11
________________ गुणैः रहितस्य मोक्षः कर्मक्षयो नास्ति अमोक्षस्य कर्मक्षयरहितस्य निर्वाण मुक्तिसुखप्राप्तिास्ति ॥ भावार्थ:-उक्त सूत्रमें शृंखलाबद्ध लेख हैं जैसे कि सम्यक् दर्शनके विना सम्यग् ज्ञान नहीं, सम्यक् ज्ञानके बिना सम्यक् चारित्र नहीं, सम्यक् चारित्रके विना सकल गुण नहीं, गुणों के विना मोक्ष नहीं, मोक्षके विना पूर्ण सुख नहीं अर्थात् आत्मिक आनंद नहीं । सो मिय बंधुओ ! सम्यक् दर्शन सम्यक् सिद्धान्तका ही नाम है, क्योंकि सिद्धान्तके जाने विना कोई भी आत्मा आत्मिक गुणों में प्रवेश नहीं कर सकता; अपितु सम्यक् दुर्शन अर्हन् देवने जो प्रतिपादन किया है वही जीवोंको कल्याणरूप है। सो अहंत देवके कथन किये हुए पदार्थको माननेसे सम्पा दर्शन होता है, सम्यक् दर्शनको आहत मत कहो वा जैन दर्शन कहो किन्तु दोनों शब्दोंका एक ही अर्थ है ॥ प्रश्न:-जिन शब्द किस प्रकार बनता है, फिर जैन शब्द किस अर्थमें व्यवहत होता है ? उत्तर:-जि' जये धातु को नक् प्रत्ययान्त होकर जिन शब्द बन जाता है । यथा 'जि' जये धातु जय अर्थमें व्यवहृत है तब

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