Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 6
________________ अब प्रस्तुत संग्रहमे गेरीनोद्वारा संकलित जैन प्राचीन लेखोकी सूची (Repertoire D'epigraphie Jaina by A Guerinot) $ क्रमानुसार लेख उपस्थित करनेका प्रयत्न किया गया है। नामोको मोटे टाइपमें छापने तथा लेखोका साराश हिन्दीमे दे देनेकी शैली प्रथम भागके अनुसार यहाँ भी अपनाई गई है । किन्तु खेद है कि प्रत्येक लेखके भीतर पद्योकी सख्याका क्रमसे अंकन नहीं किया गया, जिससे उनके उल्लेख करनेमे कुछ असुविधा हो सकती है।। इन शिलालेखोका इतिहासकी दृष्टिसे मूल्य ऑकना आवश्यक है। किन्तु अब यह कार्य उचित रीतिसे तभी निष्पन्न किया जा सकता है जब शेष शिलालेसोके संग्रह भी इसी शैलीसे प्रकाशित हो जावें । अतएव, सग्राहक और प्रकाशकका इस महत्त्वपूर्ण प्रकाशनके लिये अभिनन्दन करते हुए मैं आशा करता हूँ कि वे अपने इस कार्यको गतिशील बनाये रखेगे और विना अधिक विलम्बके संग्रहका कार्य पूरा करके लेखको और पाठकोकी दीर्घकालीन पिपासाकी पूर्णत तृप्ति करनेका अनुपम यश प्राप्त करेगे। नागपुर महाविद्यालय । नागपुर, ६-३-१९५२ । हीरालाल जैन

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