Book Title: Jain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२५]
સમીક્ષાભ્રમાવિષ્કરણ
[१९५]
सम्यग्दर्शनमां अनुकम्पा गुण होवो जोइए अने अनेकशः लोलुपतादि भावे मांस भक्षण करनार निरपेक्ष व्यक्तिने ते टकी शकतो नथी. अतएव मांस भक्षणने नरकायुबन्धना कारण तरीके वर्णवेल छे. छतां पण सापेक्ष भावे अनधीनताने लइने कदाचित् कचित् कोइ न त्यजी शकतो होय तो तेने जैनत्व ज नथी एवं एकान्त कहेवुं ते उचित नथी. सारांश ए छे केजैन नामधारीए मांस भक्षण न करवुं जोइए, मांस भक्षण महाहिंसानुं स्थान छे, अनुकम्पा गुणने लोपी नरकायुबन्धनुं कारण बने छे. फक्त एकान्त कथननी सामे ज अमारी असहकार छे.
66
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्रमशः पदन्यास करती लेखकनी लेखनीए आळेखेल अश्लिष आलेखनः'मनुस्मृति आदि ग्रन्थ के समान कहीं तो मांसभक्षण में बहुतसे दूषण बतलाते हैं, किन्तु कहीं किन्हीं ग्रंथोंमें उसी मांस भक्षणका पोषण है. "
आमांथी त्रण वस्तु स्पष्ट तरी आवे छेः
१ मांसभक्षणना संबन्धमां श्वेताम्बर शास्त्र मनुस्मृति आदि ग्रन्थोना सादृश्यने वहन करे छे.
२ श्वेताम्बर शास्त्रमां ते ते प्रासङ्किक स्थलोमां मांसभक्षणने अंगे महान् दोषो वर्णव्या छे.
३ श्वेताम्बर दर्शनना केटलाएक ग्रन्थोमां कोइ कोइ स्थले मांसभक्षणनी पुष्टि करेल छे ।
प्रथम वस्तुनो खुलासा :
विमल आचारना, अनुपम तत्रज्ञानना अने विश्वव्यापिनी दयाना वहन करनार जिनेन्द्र भाषित श्वेताम्बर आगम क्यां ? अने मांसभक्षणने अग्र स्थान आपनार मनुस्मृति क्यां? खरेखर, लेखके उपमा अलंकारने अस्थाने योजीने, पोताने माटे उपमा अलंकार भागी लीधेल छे. विचारशील वाचकवर्ग ज ते समर्प !
मांसनी भक्ष्याभक्ष्यताने अंगे मनुस्मृति प्रभृतिना निनादो :
मांस भक्षयिताऽमुत्र, यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्वं, प्रवदन्ति मनीषिण: ॥ मनुस्मृति, अ० ५ श्लो. ५५.
एकाक्षरी निर्युक्तिने अनुसारे मांस शब्दना बे विभाग कल्पीने अर्थ करता मनु जणावे छे के 'स' आ जन्ममां जेनुं मांस हुं खाइ रह्यो छु ते जीव 'मां' आगामी भवमां मने खाशे आ मांसनुं मांसपणुं छे, अर्थात् मांस शब्दनी निरुक्ति छे, एम निरुक्तविधिना निष्णात पुरुषो कहे छे. आ उपर्युक्त श्लोकथी मनु स्पष्ट जणावे छे के हे मानवीओ, आ भवमां तमे जेनुं मांस खाइ रह्या छो ते भवान्तरमां तमारुं मांस खानारा थशे माटे मांस वर्जन करवुं जोइए ।
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42