Book Title: Jain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१५३ नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां, मांसमुत्पद्यते क्वचित् । न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत्॥ मनुस्मृति, अ०५ श्ला०४८॥ प्राणीओनी हिंसा कर्या सिवाय कदापि मांस उत्पन्न थइ शकतुं नथी. ने प्राणीवध स्वर्गने आपनार नथी, माटे मांसजें वर्जन करवू जोइए। समुत्पत्तिं च मांसस्य, धधबन्धौ च देहिनाम् । प्रसमीक्ष्य निवर्तेत, सर्वमांसस्य भक्षणात् ॥ मनुस्मृति, अ०५. श्लो०४१॥
मांसनी उत्पत्ति केवी रीते थाय छे ते विचारीने तथा प्राणीओना 1ध बंधनने जोइ विचारीने सर्व प्रकारना मांस-भक्षणथी निवृत्त थर्बु जोइए, अर्थात् कोई पण जातनुं मांस खावू नहि.
आ उपर्युक्त मनुनी वचनदीपिकाए दया मार्गमा सारो प्रकाश फेंक्यो छे. आ दिशाने ज मनुए जो संभाली राखी होत तो यज्ञादिकमां अकाले मरणने शरण थता अशरण पशुगणना आक्रन्द नादो गगनमंडलने झीलवा पडत नहि. परन्तु आनी प्रतिकूल दिशा पकडवामां पण मनुए पाछीपानी करी नथी. जुओ
न मांसभक्षणे दोषो, न मद्ये न च मैथुने । प्रवृत्तिरेषा भूतानां, निवृत्तिस्तु महाफला ॥ मनुस्मृति, अ०५, श्लो०५६ ॥
मांसभक्षणमां, मदिरापानमां अने मैथुनसेवनमा दोष नथी, कारण? आ तो जीवोनी अनादिकालनी प्रवृत्ति ज छे. आन वर्जन करवाथी महालाभ थाय छे.
मनुना आ पूर्वापरनां वचनो परस्पर केटलो विरोध धरावे छे ? पूर्वना त्रण श्लोको ज्यारे मांसभक्षणमां दोष बतावे छे त्यारे चोथो श्लोक दोषनी ना पाडे छे. अरे, पूर्वापरनां वचनो तो बाजु पर रह्यां, परन्तु अन्तिम श्लोकना ज अर्थमां परस्पर विरोध आवे छे. जुओ-अन्तिम श्लोकना बे अर्थ बताव्या छः
१ अनादि कालनो जीवनी प्रवृत्ति होवाथी मांसभक्षणादिमां दोष नथी, २ मांसभक्षणादिनी निवृत्ति करवाथी महान् लाभ थाय छे.
आमांथी बीजा अर्थना संबन्धमा पूछवामां आवे छे के निवृत्ति महाफलवाळी शाथी छे ? शु सदोष प्रवृत्तिने रोकनार होवाथी ? अथवा निर्दोष प्रवृत्तिने रोकनार होवाथी? सदोष प्रवृत्तिने रोकनार होवाथी, एम जो कहेता हो तो नक्की थइ चूक्यु के मांसभक्षणादिनी प्रवृत्ति सदोष छे. अने पूर्व अर्थमां तो निर्दोष छे तेम जणावी छो, माटे परस्पर विरोध आवशे. कदाच एम कहो के निर्दोष प्रवृत्तिने रोकनार होवाथी महालाभ छे, तो सारांश ए आव्यो के निर्दोष वस्तुने रोकथामां महालाभ थाय छे. हवे निवृत्ति निर्दोष होवाथी निवृत्तिनी निवृत्ति करवामां पण महालाभ
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