Book Title: Jain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१७०] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१३ यथाविधि नियुक्तस्तु, यो मांसं नात्ति मानवः । स प्रेत्य पशुतां याति, संभवानेकविंशतिम् ।। मनुस्मृति, अ.५ श्लो. ३५ ॥ यज्ञमां अथवा श्राद्धमां शास्त्रोक्त विधि प्रमाणे निमन्त्रण करायेल मानव जो मांस-भक्षण न करे तो तेने मरीने एकविश वार पशु ज्ञातिमां उत्पन्न थर्बु पडे छे. आ मनुनां वचनो बतावे छे-के धार्मिक प्रसंगमां तो इच्छा हो या न हो तो पण अवश्य मांस खावू जोइए, जो नहीं खाव तो मरी एकवीश वार पशु थशो । विरोधपरीहारनी तृतीय चेष्टाः__ " न मांसभक्षणे दोषः” आ वाक्यथी शास्त्रीय मांसभक्षण जे निर्दोष बतावेल छे ते गृहस्थाश्रमने माटे छे, अने “ निवृत्तिस्तु महाफला " ए वाक्य बडे जे मांसभक्षणनी निवृत्ति बतायी छे ते संन्यासाश्रमने माटे छे. हवे अहीया गृहस्थाश्रममां जे मांस भक्षणनी प्राप्ति छे तेनो सन्यासाश्रममां निषेध थाय छे माटे “ प्राप्तिपूर्वको हि प्रतिषेधः” प्राप्ति पूर्वक ज निषेध होय ए वाक्यनो पण विरोध आवतो नथो, तथा गृहस्थाश्रममा रहेल मानवीने धार्मिक प्रसंगे मांसभक्षण करवू जोइए अने करे. आम मानवाथी विधिमार्ग सचवाई रहे छे तथा सन्यासाश्रममां मांसनो त्याग करवाथी निवृत्तिमार्ग पण सचवाइ रहे छे. आमां कोइ पण जातना विरोधने अवकाश रहेता नथी। विरोधपरीहारक तृतीय चेष्टानी अनुचितता:___ आ उपर्युक्त समाधानमां एक महान् दोष आवे छे ते ए के “न मांसभक्षणे दोषः " आ वाक्य टकी शकतुं नथी कारण के जे मानवी प्रव्रज्या पदवी मेळववाने माटे कमनसीब छे तेने तो शास्त्रीय मांस खावु ज पडशे अने तेथी मांस-निवृत्तिनो जे महालाभ ते मेळवी शकवा ते भाग्यशाली बनी शकशे नहि. माटे मांसभक्षणनी निवृत्तिथी जे महालाभ मेळववानो हतो ते ज मेळवी शकातो नथी ए ज मोटो दोष छे. पछी बीजा दोषनी गवेषणानी पण शी जरूरत छ ? __ हवे आ विषयना विशेष उंडाणमां नहीं उतरता आ प्रस्तुत विषयने उपसंहारी अमो एटलं ज जणाववा मांगीए छीए के मनुस्मृतिए धार्मिक प्रसंगने उद्देशीने मांसभक्षणने ज्यारे अग्र स्थान आपेल छे त्यारे दिगम्बर लेखके उपमाने अस्थाने योजी छे एम जे अमो जणावी गया छीए ते व्याजबी छे. दिगम्बर लेखकना लखाणमांथी पूर्व तारवेली द्वितीय वस्तुमां अमने कांइ कहेवा जेवु रहेतुं नथी. त्रिजी वस्तुमां लेखके जणाव्युं हतुं जे "प्रवेताम्बर दर्शनना केटला एक ग्रन्थोमां कोइ कोइ स्थळे मांसभक्षणनी पुष्टि करेल छे." आ हकीकत पण तद्दन सत्यथी वेगळी छे. श्वेताम्बर दर्शनना कोइ पण शास्त्रे कोइ पण स्थळमां मांसनी पुष्टि करीज नथी. आ संबन्धमा दिगम्बर लेखके आपेला पाठो मीमांसा पूर्वक अमो आगल बतावीशु. (अपूर्ण) For Private And Personal Use Only

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