Book Title: Jain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरतर गच्छीय दो आचार्यों के रासाका ऐतिहासिक सार लेखक : – श्रीयुत अगरचंदजी भवरलालजी नाहटा ( गतांक से पूर्ण ) बीकानेर नगर में बोथरा गोत्रीय धर्मसी साह निवास करते थे । उनकी धर्मपत्नीका नाम धारलदेवी था, दम्पति सुख पूर्वक सांसारिक सुख भोगते हुए रहते थे । सं० १६४७ वैशाख शुक्ला ७ को धारदेवीने शुभ लक्षणवान सुन्दर पुत्र जन्मा । पिता द्वारा नाना प्रकार के उत्सव किए जाकर शिशुका नाम 'खेतसी कुमार' रखा गया। बाल्यकाल में ही कुमार समस्त कलाओं का अभ्यास कर निपुण बन गए । 66 एक वार बीकानेर में खरतर गच्छाचार्य श्रीजिनसिंहस्ररि पधारे । उनका धर्मोपदेश सुन वैराग्य वासित होकर कुमारने दीक्षा लेने के लिए मातापितासे आज्ञा मांगी। बड़ी कठिनता से अनुमति प्राप्त कर बड़े समारोह के साथ सं० १६५७ मार्गशीर्ष कृष्णा १०* के दिन प्रव्रज्या ग्रहण की। उनका नाम राजसीह रखा गया। तत्पश्चात् मांडल के तप कराके छेदोपस्थापनीय चारित्र दे उनका नाम राजसमुद्र प्रसिद्ध किया । राजसमुद्रजीकी बुद्धि बड़ी कुशाग्र थी । अल्पकाल में न्याय, व्याकरण तर्क, अलङ्कार, कोष, ४५ आगम आदि पढ कर विद्वान हुए। तेरह वर्ष को अल्पावस्था में चिन्तामणि तर्कशास्त्र आगरे में पढा । युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजीने सं० १६६७ + में आसाउलि में राजसमुद्रजी को वाचक पद से अलङ्कृत किया । वाचकजीने समसद्दीसिकदार को रंजित करके २४ चोरों को बन्धनमुक्त कराया। घंघाणी ग्राम में प्रगट हुई प्रतिमाओं की प्राचीन लिपि पढी मेडता में अम्बिका देवी सिद्ध हुई। आगे संघपति रतनसी, जुठा और आसकरण के साथ तीनवार शत्रुञ्जयकी यात्रा की थी, चौथी वार देवकरण के संघ के साथ सिद्धगिरिकी स्पर्शना की । । * रासका प्रथम पत्र न मिलने से यहांतक का उल्लेख श्रीसारकृत जिनराजस्सूरि रास " से लिया गया है । 1 * श्रीसारकृत रास में सं० १६५६ मा० शु० १३ लिखा है । इस रास की प्रति में भी पहिले यही मिती लिखकर और फिर काट कर उपर्युक्त मिती दी है । अन्य प्रबन्ध में सं० १६५० मा० सु० १ लिखा है । +बन्ध में सं० १६६८ का उल्लेख है। इस रास में मूल गाथा में संवत् किनारे पर लिखा है। For Private And Personal Use Only

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