Book Title: Jain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५] ઐતિહાસિક સાર [१८५] वाचकजी को बड़े बड़े राजा, महाराजा, राणा और मुकरबखान नवाब आदि बहुमान देते थे। मुकरबखान ने सम्राट् के समक्ष इनकी बड़ी प्रशंसा की । सम्राट् जहांगीर के आमन्त्रण से श्रीजिनसिंहसूरिजी बीकानेर से बिहार कर मेड़ता पधारे । वहाँ सृरिजीका शरीर अस्वस्थ रहने लगा । अन्तसमय में वाचकजीने बड़ी भक्ति की और सूरिजी के श्रेयार्थ गच्छ पहिरावणी करने, ज्ञानभण्डार में ६३६००० ( ग्रन्थाग्रन्थ) पुस्तकें लिखवाकर रखने, और ५०० उपवास करने का वचन दिया। सूरिजी के स्वर्गवासी हो जाने पर सं० १६७४ फा० शु० ७ शनिवार को राजसमुद्रजी को उनके पट्टपर स्थापित किया गया। संवपति आसकरणने उत्सव किया। आचार्य हेमसूरिने * सूरिमन्त्र दिया । भट्टारक श्रीजिनराजस्रुरि नाम रखा गया । दूसरे शिष्य श्रीजिनसागरसूरिजी को भी आचार्य पदवी दी । कविने पदस्थापना महोत्सव करनेवाले सुप्रसिद्ध चोपडा शाह आसकरण का यह विवरण लिखा है- जिनके घरमें परम्परागत बडाई थी । शाह माला संग्राम की मार्या दीपकदे के पुत्र कचरेने बहुत धर्मकार्य किए । आसकरण के पिता अमरसी और माता अमरादेवी और स्त्री का नाम अजायब था । अमीपाल, कपुरचंदभाई, ऋषभदास और सूरदास नामक बुद्धिशाली पुत्र थे । संघपति आसकरण चोपड़ाने शत्रुंजय संघ, जिनालय निर्माण, पदस्थापना महोत्सव आदि धर्मकार्य किए। भट्टारक श्रीजिनराजस्ररिको जेसलमेर के राउल कल्याणदासने विनति करके जेसलमेर बुलाए, स्वागतार्थ कुमार मनोहरदास को भेजा । भणसाली जीवराजने प्रवेशोत्सव किया। सूरिजीने चातुर्मास किया । उनके प्रभावसे वहाँ सुकाल हुआ। बहुतसे धर्मकार्य हुए। पर्युषणा में अमरसिंह के पुत्र जींदासाहने पौषधवालोंको १ सेर खाँड और नगद रूपये की प्रभावना की । राजकुमार मनोहरदास प्रतिदिन वन्दना करने आते, राउलजी बहुमान देते थे । संघपति थाहरू शाह जो श्रीमाल शाह के सुपुत्र थे, लौद्रवपुर के मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया और सं० १६७५ मार्गशीर्ष शुक्ला १२ शुभ मुहूर्त में सूरिमहाराज से प्रतिष्ठा करवाई | कविने थाहरू शाह के धर्मकार्यों का वर्णन इस प्रकार किया है-लौद्रवपुर का जीर्ण प्रासादोद्धार, ग्रामदो में खरतर गच्छीय ज्ञानभंडार कराया, दानशाला खोली, चारों अट्ठाहियों में ४४०० जिनप्रतिमाओं की पूजा, सातों मन्दिरों में ध्वजा चढाई, गीतार्थी के पास सिद्धान्त श्रवण, त्रिकाल देवपूजा आदि धर्मकार्य करता था । लौद्रवपुर प्रतिष्ठा - समय देशान्तरों का संघ बुलाया। तीन रूपए और अशरफीयोंकी लाहण की, राउलजी को विपुल द्रव्य भेंट किया, या * 'प्रबन्ध में इन्हें पूर्णिमा गच्छीय लिखा है । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42