Book Title: Jain Satyaprakash 1937 04 SrNo 21
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ---- - ४७ શ્રીયશદ્વાચિંશિક चउवरिसे सत्थाणं, सेसाणं तकियाण पासंमि ॥ णायायरियस्सेह-भासो तेणं को तत्थ ॥ २१ ॥ सिग्धं मओ निरत्थो, वणारसीदाससीसकुंअरस्स ॥ तत्तो ते संपत्ता. जइणउरीरायणयरंमि ॥२२॥ थिरया सिरिणागोरी-सराहमझे कया मुया तेहिं ॥ वाइविउहपमुडेहि, लद्धं माणं जसेण तया ।। २३ ॥ मावतखानहिगारी, इह गुणरसिओ पयाणुकूलमई ।। तस्स सहाए जाया, जससंसा ता समाहूया ॥ २४ ॥ मुणिवरसिरिजसविजया, करीअ मेहावला वहाणाई। अट्ठारस तत्थ तया, ततो हिटोऽहिगारी सो ॥ २५ ॥ भव्युस्सब्वाइपुव्वं, सम्माणं पि य करीअ हरिसेणं ।। जिणसासणस्स विहिया, पहावणा सिरिजसेण वरा ॥२६॥ वायगपयस्स जुग्गा, बहुस्सुयाजेयपुज्जजसविजया ॥ इय विष्णत्ती विहिया-पासे सिरिदेवमूरिस्स ॥ २७ ॥ रायणयरसंवेणं, विणयविवेयाइगुणगणड्डेण ॥ ठविया सा हिययंमि, गुरुणा गुणरायजुत्तेणं ॥ २८ ॥ उत्तमवीसइठाणा-राहणतप्परविबुद्धजसगणिणो ।। णियगुरुणो आणाए-विजयप्पहरिणाऽऽणंदा ॥ २९ ॥ गयससिहदुवासे, संघुल्लासुस्सवाइजोगेणं ।। दिनमुवज्झायपयं, जसविजया वायगा जाया ॥ ३० ॥ अज्झप्पणायजोगा, जेणं परिचच्चिया सगंथेसु ॥ तं वायगजसविजयं, सरति धण्णा णरा णिच्चं ॥ ३१ ॥ गुणजुगहइंदुवासे, तेणं दभावईचउम्मासे ॥ सग्गपयं संपत्तं अणसणसुसमाहिविहिपुव्वं ॥ ३२ ॥ इय जसचरियं सिढे, गुणाणुरागेण लेसओ भणियं ॥ जाणाणुकरणभावा, लहंतु परमुण्णई भव्वा !॥ ३३॥ गुणणंदणिहिंदुसमे, सिरिगोयमकेवलत्तिपुष्णदिणे ॥ वरजिणसासणरसिए, जइणउरीरायणयरंमि ॥ ३४ ॥ रयणा चरियस्स कया, गुरुवर सिहिणेमिमूरिसीसेणं ॥ पउमेणायरिएणं, पियंकरज्झयणलाहढें ॥ ३५ ॥ For Private And Personal Use Only

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