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સમીક્ષાશ્રમાવિષ્કાર
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[उद्योते प्रतिलिखितमादाय काल अने भावनी सुन्दर घटना साथे
संस्तारकं निशि प्रलप्तः। भिन्न भिन्न अवस्थामां जिनकल्प अने उद्वर्तनपरिवर्तननिर्गमनविवर्जित- स्थविरकल्प विगेरे बतान्या छे, माटे प्रयतः ॥१९९॥
वस्त्रावस्त्र विगेरेनी व्यवस्था अनेक रीते यदि संस्तारसमीपे पश्वेन्द्रियं लाभ द्रष्टिए निर्भर रहे छे । आ सम्बमृतं सूर्योदये।
न्धमा थुचवण तो तेज सम्प्रदायने छे के तर्हि तस्य भवेच्छेदः
जेओ उद्घोषणा करी रह्या छे के वस्त्र __ पञ्चव्युत्सर्गपरिमाणः ॥२००॥] अथवा पात्र राखवा नहि, जो राख्या तो भावार्थ- प्रकाशमां पडिलेहेला #. साधुपणु चाल्गु जशे विगेरे। थाराने लइने रात्रे लुतेला एवा, उद्वर्तन,
द्रष्टान्त तरीके जेम श्वेताम्बर सम्प्रपरिवर्तन अने निर्गमन क्रियाथी रहित दायमां अमुक काल एवो हतो के आमुनि, सूर्योदय थये छते संथारानी पासे गमना पुस्तकथी निरपेक्ष रीते वचनमरेला पञ्चन्दियने देखे तो पांच व्यत्स द्वारा ज शास्त्र भणाता भणावात हता, प्रमाण प्रायश्चित लागे । हवे जो ते समय पुस्तक राखवामां असंयम संथारो ज न राखवानो होय तो पडिले
गणातो हतो अने तेवा धारणा कुशल हण शानुं, तेना पर सुवा, शानुं अने
जीवोना अभावमा पुस्तक राखवामां महा प्रायश्चित्त शानुं होय ? अने बतावेल छ,
संयम गुण छ । जुओ-श्वेताम्बरदर्शनमा माटे दिगम्बर मुनि संथारा पण राखे छ।
दशकालिकचूर्णिः-कालं पुण पडश्च
चरणकरथट्टा अवाच्छित्तिनिमित्तं च ___ उपरना पाठो परथी स्पष्ट समजी गेण्हमाणस्स पोत्थए संजमो भवइ । शकाय तेम छे के दिगम्बरोए सर्वथा [कालं पुनः प्रतीत्य चरणकरणार्थमव्युवस्त्र अने पात्रना त्यागो जे बताव्या ते च्छित्तिनिमित्तं च गृह्णानस्य पुस्तकानि अमुक जातना आवेशने लइने छे, परंतु संयमो भवति ] अमारे शरीर सिवाय कोइ वस्तु पासे
भावार्थ-कालने आधीने, अर्थात् जे राखवीज नथी आवी त्याग भावनाथी नहिं । जो त्याग भावना ज हती, शरीर
कालमां, मेधा, आयु, ग्रहणशक्ति अने
धारणाशक्तिनी हानि होय ते कालमां सिवाय पासे कांइ राखवू ज न हतुं तो पछी वल्कलना ने तट्टीसादरना वस्त्र,
चरणसित्तरी अने करणसित्तरीने माटे, कमण्डलु, मोरपिज्छी पुस्तक पाना,
तथा आगमनो प्रवाह वहेतो राखवा माटे संथारो विगेरे शा माटे राख्यां ? कदाच
पुस्तकोने प्रहण करवामां मुनिओने संयमएम कहेवामां आवे के उपर्युक्त वस्तु
गुण छे । तथा जुओ-निशीथना बारमा मार्गमां साहायक छे माटे राखवामां आवे
उद्देशामां भाष्यगाथा अने तेना परनी
चूर्णिनो पाठः के तो शुं वस्त्र अने पात्र साहायक नथी? केवो कदाग्रह।
घेप्पति पोत्थयपणगं
कालियणिज्जुत्तिकोसट्ठा ॥ अमारा वेताम्बर दर्शनना प्रवर्तक [गृह्णाति पुस्तकपञ्चकं कालिकलक्ष देवोए तो प्रथमथी ज द्रव्य क्षेत्र, नयुक्तिकोशार्थम् ॥]
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