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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
होय तो तेमना गुरु-भाइओ लायक छ । पोत्थयपिच्छकमंडलुवकलयादि गुरुभाइओ न होय तो गच्छ लायक छ। परेसिमुक्यरणं । त्रण पुरुषनो जे वंश ते गच्छ कहेवाय तेसि परोक्खदो णिकजेणुवभो. छ। गच्छ न होय तो बाकी रहेल गिटयं जेण ॥११७॥ संघ लायक छे। सात पुरुषनो जे वंश ते [ पुस्तकपिच्छीकमण्डलुवल्कलादि संघ कहेवाय छे ॥ १९ ॥ दरेक साधुओ परेषामुपकरणम् । एटले पोताना अथवा परना शिष्यादिको तेषां परोशतो निजकार्येणोपभोगितं मालोके आपेली उपधिने लायक छ। येन ॥११७॥ ज्ञानोपधि ते पुस्तक लेने लायक तो जे भावार्थ---पुस्तक, पिच्छो, कमंडलु, शानी होय ते ज छे, अथवा पुस्तकनो वल्कल (वृक्षनी छालनां वस्त्र विगेरे ) मालीक जे साधुने पुस्तक आप ते साधु विगेरे जे अन्य अनिनी उपधि ते तेनो ग्रहण करे ॥२०॥
परोक्षमा एटले गेरबाजरीमा पुछया सिवाय आमां प्रथम श्लोकमां आचार्यनी
अन्य मुनि जो वापरे तो गुरुमहाराज
नो पासे आलोचना प्रायश्चित्तथो शुद्ध पासे पुस्तक विगेरे उपधि होय छे, अने
__थाय छे अर्थात् प्रत्यक्षमां बापरो होय तेना बीजा साधुओ बतावेल क्रम प्रमाणे .
तो वांधो नथी। हकदार छ, एम जणाववामां आवेल छ। सेमां पण उपविधी केवल ज्ञानोपधि ते आना उपरथी स्पष्ट समजी शकाय लेवानी छे एम नहि परंतु संयमोपकर- तेम छे के दिगम्बर मुनिओ केवी केवी णादि पण लेवानां छे, कारणके उपविनो उपषि राखे छे। वळी आज ग्रन्थमां अर्थ टीकाकारे पुस्तक विगेरे उपकरण लोढार्नु उपकरण खोयायुं हाय अथवा बतावेल छे। अने ज्ञानोपकरणमां तो। अन्य उपकरण खादायु होय तो सेना नीचेना श्लोकनी टोकामां एकलुं पुस्त- प्रायश्चित्त पण बताया है। जा उपकरण कजलीघेल छे. माटे आदिपदथी अन्यो- ज राखवानां न होय तो खोवानी ने पकरण लेg जोइए, ते अहीं चारित्रोप- प्रायश्चित्तनो पात शानो होय ? करणादि समथु।
दिगम्बर मुनिओ संथारा पण राखे
छे ए वासने आ ज ग्रंथ पुरवार करे छे। वीजा श्लोकमां तथा तेनी टोकामां
जुओः-गाथा १९९-२०० सामान्योपधि अने ज्ञानोपाधि एम प्रथक
उजोए पडिलिहियं दाउं संथारयं पृथक् ग्रहण करेल छे, तथा झानोपधि
निसिपमुत्तो। संयमोपधि, शौचोपधि तथा अन्य उपधि
ভবoামালকানিডিয়া तेना मालीक मुनिनी रजा सिवाय बीजा
पत्रयो १९ ॥ मुनिए वापरी होय तो तेनां प्रायश्चित्त पण वतावेला छ । जुनो ......
जदि संथारसमोसे पेच्छद पंचिंदिय दिगम्वरशास्त्र. इन्द्रनन्दिविचित तो तस्स हवे छेदो च्छेदपिण्ड, गाथा ११७
पंचविउस्लमपरिमापो ॥२०॥
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