Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 3
________________ बौद्ध और वैदिक साहित्य-एक तुलनात्मक अध्ययन श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री भारतीय संस्कृति विश्व का एक महान् संस्कृति है। यह संस्कृति सरिता की सरस धारा की तरह सदा जन-जीवन में प्रवाहित होती रही है। इस संस्कृति का चिन्तन जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीन धाराओं से प्रभावित रहा है। यहाँ की संस्कृति और सभ्यता का रमणीय कल्पवक्ष इन तीनों परम्पराओं के आधार पर ही सदा फलता-फूलता रहा है। इन तीनों ही परम्पराओं में अत्यधिक सन्निकटता न भी रही हो तथापि अत्यन्त दूरी भी नहीं थी। तीनों ही परम्पराओं के साधकों ने साधना कर जो गहन अनुभूतियां प्राप्त की, उनमें अनेक अनुभतियाँ समान थीं और अनेक अनुभूतियाँ असमान थीं। कुछ अनुभूतियों का परस्पर विनिमय भी हुआ। एक-दूसरे के चिन्तन पर एक-दूसरे का प्रतिबिम्ब गिरना स्वाभाविक था किन्तु कौन किसका कितना ऋणी है यह कहना बहुत ही कठिन है। सत्य की जो सहज अभिव्यक्ति सभी में है उसे ही हम यहाँ पर तुलनात्मक अध्ययन की अभिधा प्रदान कर रहे हैं। सत्य एक है, अनन्त है, उसकी तुलना किसी के साथ नहीं हो सकती तथापि अनुभूति की अभिव्यक्ति जिन शब्दों के माध्यम से हुई है, उन शब्दों और अर्थ में जो साम्य है उसकी हम यहाँ पर तुलना कर रहे हैं जिससे यह परिज्ञात हो सके कि लोग सम्प्रदायवाद, पंथवाद के नाम पर जो रागद्वेष की अभिवृद्धि कर भेद-भाव की दीवार खड़ी करना चाहते हैं वह कहाँ तक उचित है। जो लोग धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन नहीं करते हैं उनका दृष्टिकोण बहुत ही संकीर्ण और दुराग्रहपूर्ण बन जाता है । दुराग्रह और संकीर्ण-दृष्टि की परिसमाप्ति हेतु धार्मिक साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन बहुत ही आवश्यक है। __गंभीर अध्ययन व चिन्तन के अभाव में कुछ विज्ञों ने जैन धर्म को वैदिक धर्म की शाखा माना किन्तु पाश्चात्य विद्वान् डा० हर्मन जेकोबी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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