Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02 Author(s): Kailashchandra Shastri Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय नवम्बर १९७५ में जैनसाहित्यका इतिहास भाग १ का प्रकाशन हुआ था और उसके प्रकाशकीयके अन्तमें आशा की थी कि उसका दूसरा भाग भी दिसम्बर १९७५ तक प्रकाशित हो जायगा । किन्तु जो सोचा जाता है वह पूरा नहीं होता । इस दूसरे भाग के प्रकाशनमें दिसम्बर १९७५ के बाद ७ माह तो पूरे लग ही गये हैं । इसमें सबसे बड़ा बाधक कारण अर्थका अभाव रहा है । यह उसी प्रकार जिस तरह मजदूर जितना कमा लेता है उतनी गुजर-बसर कर लेता है । और यदि नहीं कमा पाता है तो उसे भूखा रहना पड़ता है । यही हाल इसके प्रकाशनका रहा | प्रेरणा या प्रयत्नसे जो आर्थिक सहायता मिली वह कागज तथा छपाईमें दे दी। पिछले दिनों बा० नन्दलालजी कलकत्ताने स्वयं और अपने मित्रोंको प्रेरित कर २३५१ रुपए की ग्रन्थप्रकाशन -सहायता तथा ५ संरक्षकसदस्य बना कर भिजाये । अभी हाल में बाहुबली (कोल्हापुर) जानेपर श्री ब्र० माणिकचन्द्रजीके चवरे कारंजाने भी हमारी प्रेरणापर कुछ लोगोंको संरक्षक सदस्य बनाकर सहयोग प्रदान किया तथा प्रयासशील हैं । इसी श्रृंखला में दानशीला श्रीमती कुसुम बेन मोतीचन्दने भी ५०० ) की प्रकाशन - सहायता प्रदान की है । हमें इतनी ही प्रसन्नता है कि श्रद्धेय पं० कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री वाराणसीका वर्षों पूर्व किया गया परिश्रम सफल हो गया और उनका यह 'जैनसाहित्यका इतिहास' भाग २ भी, जो अन्तिम है, छप गया है । इसके लिए श्रद्धेय पण्डितजीके तो कृतज्ञ हैं ही, सहायतादाताओं, उसके प्रेरकों और वर्द्धमान प्रेसको भी धन्यवाद देते हैं, जिनके समवेत प्रयत्नोंसे यह कार्य सम्पन्न हो सका । यह ग्रन्थ भी भगवान् महावीरकी २५००वीं निर्वाण-शतीका एक सुखद, सुन्दर और ज्ञानमय उपहार है, जो निश्चय ही पाठकोंका विशेष ज्ञान - सम्बर्द्धन करेगा | पार्श्व- निर्वाण -सप्तमी, वी० नि० सं० २५०२ (डॉ०) दरबारीलाल कोठिया २ अगस्त, १९७६ ई०, मंत्री, श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमालाPage Navigation
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