Book Title: Jain Sahitya ka Itihas 02
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 16
________________ ४ : जैनसाहित्यका इतिहास किये हुए वलयाकार असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। उन सबके मध्यमें एक लाख योजन विस्तार वाला जम्बूद्वीप है। उसके चारों ओर दो लाख योजन विस्तार वाला लवण समुद्र है। उसके बाद दूसरा द्वीप और फिर दूसरा समुद्र है। यही क्रम अन्त तक है। उनका विस्तार उत्तरोत्तर पूर्वकी अपेक्षा दुगुना होता गया है। उन द्वीप और समुद्रोंके कुछ नाम इस प्रकार हैं-जम्बूद्वीप', लवणसमुद्र, घातकी खण्ड द्वीप, कालोदधि समुद्र, पुष्करवर द्वीप, पुष्करवर समुद्र, वारुणीवर द्वीप, वारुणीवर समुद्र, क्षीरवर द्वीप, क्षीरवर समुद्र, घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, इक्षुवर द्वीप, इक्षुवर समुद्र । अंतके द्वीप और समुद्रका नाम स्वयंभूरमण है। पुष्करवर द्वीपके ठीक मध्यमें वलयाकार मानुषोत्तर पर्वत है। वहीं तक दक्षिणमें हिमवान, हेमकूट और निषध तथा उत्तरमें नील, श्वेत और श्रृंगी नामक वर्ष पर्वत हैं। उनमेंसे मध्यके दो पर्वत निषध और नील एक एक लाख योजन तक फैले हैं। उनसे दूसरे दूसरे दस दस हजार योजन कम हैं। वे सभी दो हजार योजन ऊँचे और इतने ही चौड़े हैं । मेरुपर्वतके दक्षिण ओर भारतवर्ष, किम्पुरुषवर्ष, और हरिवर्ष है। उत्तरकी ओर रम्यक हिरण्यमय और उत्तरकरुवर्ष हैं जो भारतवर्षके समान धनुषाकार है । प्रत्येक का विस्तार नौ नौ हजार योजन है। इन सबके बीचमें इलावृत्त वर्ष है जिसमें सुमेरुपवंत खड़ा है। यह इलावृत्त सुमेरुके चारों ओर नौ हजार योजन तक फैला है। इसके चारों ओर चार पर्वत हैं। ये चारों पर्वत मानों सुमेरुको धारण करनेके लिये चार कीलियां हैं। इनमेंसे पूर्वमें मन्दराचल, दक्षिणमें गन्धमादन, पश्चिममें विपुल और उत्तरमें सुपार्श्व हैं। ये सभी दस दस हजार योजन ऊंचे हैं। जम्बूवृक्ष के कारण द्वीपका नाम जम्बूद्वीप पड़ा है।' -वि० पु० द्वि० अं०, अ०२।तथा भा० पु०, ५ स्क०, २० अ० । १. जम्बूद्वीपको चारों ओरसे लाख योजन विस्तारवाले वलयाकार सारे समुद्रने घेर रक्खा है। उसी तरह क्षार समुद्रको घेरे हुए प्लक्षद्वीप है। जम्बूद्वीपका विस्तार लाख योजन है। इसका विस्तार उससे दूना है। प्लक्षद्वीपको अपने ही बराबर परिमाण वाला इक्षुरस समुद्र घेरे हुए है। इस समुद्रको उससे दूना विस्तार वाला शाल्मल द्वीप घेरे हुए हैं। -वि० पु०, अं० २, अ० ४ । २. 'पुष्कर द्वीपमें वहाँके अधिपति महाराज सवनके महावीर और धातकी नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। अतः उन दोनोंके नामानुसार उसमें महावीर खण्ड और घातकी खण्ड नामक दो वर्ष हैं। इसमें मानसोत्तर नामक एक ही वर्षपर्वत कहा जाता है जो इसके मध्यमें वलयकार स्थित है तथा पचास

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