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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : १५ लोयविणिच्छयकत्ता रुचक वरहिस्स वण्णणपयारं ।
अण्णेण सरूवणं वक्खाणइ तं पयासेमि ॥१६७।-अ० ५। __'लोकविनिश्चयके कर्ता रुचकवर पर्वतका वर्णन अन्य प्रकारसे करता है उसे यहाँ कहते हैं।
पण्णासाधिय दुसया कोदंडा राहुणयर बहलत्तं ।
एवं लोयविणिच्छय कत्तायरिओ परूवेदि ॥२०३।।-अ०७ । 'राहुनगरका बाहुल्य' दो सौ पचास धनुष प्रमाण है ऐसा लोकविनिश्चयके कर्ता आचार्य कहते हैं।
सव्वाणि पणीयाणि कक्खं पडि छस्स सहावेण ।
पुव्व व विकुव्वणाए लोयविणिच्छय मुणी भणइ ॥२७०।-अ० ८ । 'प्रत्येक कक्षाकी सब सेनाएँ स्वभावसे छ सौ और विक्रियाकी अपेक्षा पूर्वोक्त संख्याके समान हैं । ऐसा लोकविनिश्चयके कर्ता मुनि कहते हैं ।
खण हणहट्ट दुग इगि अट्ठय छ स्सत्त सक्क देवीओ।
लोयविणिच्छय गंथे हुवंति सेसेसु पुव्वं व ॥३८६॥-अ० ८। 'शून्य, शून्य, शून्य, आठ, दो, एक, आठ, छह और सात, इन अंक प्रमाण सौधर्म इन्द्रकी देवियाँ होती हैं। शेष इन्द्रोंमें देवियोंका प्रमाण पहलेके समान होता है ऐसा लोकविनिश्चय ग्रन्थमें कहा है'।
लोकविणिच्छयगंथे लोयविभागम्मि सव्व सिद्धाणं ।
ओगाहण परिमाणं भणिदं किंचूणचरिमदेहसमो ॥९॥-अ० ९ । 'लोकविनिश्चय ग्रन्थमें और लोकविभागमें सब सिद्धोंकी अवगाहनाका प्रमाण कुछ कम चरम शरीरके समान कहा है।
इस प्रकार त्रिलोक प्रज्ञप्तिमें लोकविनिश्चयके मतभेदोंका उल्लेख मिलता है। यह लोकविनिश्चय अवश्य ही कोई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ होना चाहिये । अकलंकदेवने तत्त्वार्थवार्तिकके तीसरे और चौथे अध्यायमें जो त्रिलोक सम्बन्धी कथन किया है लोकविनिश्चय सम्बन्धी मतभेदोंके साथ उनका मिलान करनेसे यह स्पष्ट हो जाता है कि अकलंकदेवने लोकविनिश्चयके अनुसार कथन किया है । अतः उनके १. तत्त्वार्थवातिकमें (४।१२) राहुविमानका बाहुल्य लोकविनिश्चियके अनुसार
२५० धनूष बतलाया है। .