Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ २१८ गंगादास ये मूलत: गुजराती थे और कारंजा के भट्टारक धर्मचन्द के शिष्य थे । गुरु की आज्ञा से मराठी में भी कुछ रचनाएँ इन्होंने लिखीं । इनमें सबसे बड़ा पार्श्वनाथभवान्तरगीत है जिसे कवि ने डफगान कहा है- डफ नामक वाद्य की संगत के साथ यह गाया जाता था । इसमें ४७ कडवकों में भगवान् पार्श्वनाथ के नौ पूर्वजन्मों का वर्णन है । इसकी रचना शक १६१२ ( सन् १६९०) में हुई थी । चक्रवर्ती - पालना गंगादास की दूसरी रचना २१ कडवकों की है । इसमें भरत चक्रवर्ती के शिशु अवस्था में झूले में झूलने का मधुर वर्णन है । २ नेमिनाथ भारती ( ४ कडवक) 3 तथा श्रीपुर- पार्श्वनाथ आरती (५ कडवक) ये गंगादास की अन्य मराठी रचनाएं हैं। गुजराती में रविव्रतकथा, त्रेपन क्रिया विनती और जटामुकुट तथा संस्कृत में पूजा, संमेदाचलपूजा एवं तुंगीबलभद्रपूजा ये इनकी अन्य हेम कीर्ति पंचमे रुपूजा, क्षेत्रपालरचनाएँ उपलब्ध हैं । मराठी जैन साहित्य का इतिहास पट्टशिष्य थे । इनके द्वारा सन् ये लातूर के भट्टारक विद्याभूषण के १६९६ से १७३१ तक स्थापित पाँच मूर्तियों और यन्त्र नागपुर और सिन्दी (वर्धा) के मन्दिरों में उपलब्ध हैं । मराठी में इनकी चार छोटी रचनाएँ उपलब्ध हैं । इनमें अरहंतपूजा (९ पद्य) और बारसभा आरती ( ३ पद्य) प्रकाशित हो चुके हैं" तथा दशलक्षणधर्म आरती ( ४ पद्य) एवं तीर्थवन्दना ( १९ पद्य ) अप्रकाशित हैं । इन्होंने गुजराती में अरहंतपूजा तथा संस्कृत में पार्श्वनाथस्तोत्र व पद्मावतीस्तोत्र की भी रचना की थी । १. प्रा० म०, पृष्ठ ६८ । १९०४ ) में प्रकाशित । २. जैनी पालने ( प्र ० जिनदास चवडे, वर्धा, ३. आरती संग्रह (प्र० जिनदास चवडे, वर्धा, ४. आरती संग्रह (प्र० जिनदास चवडे, वर्धा, ५. पहली कृति जिनेन्द्र मंगलआराधना ( प्र० जयकुमार दोडल, हिंगोली, सन् १९५६) में तथा दूसरी आरती संग्रह (प्र० जिनदास चवडे, वर्धा, सन् १९०४ ) में प्रकाशित हुई थी । ६. हस्तलिखित हमारे संग्रह में है । Jain Education International १९१०) में प्रकाशित । १९२६) में प्रकाशित । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284