Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 253
________________ २४० मराठी जैन साहित्य का इतिहास मराठी रूपान्तर आपकी प्रारम्भिक कृतियां थीं। छात्रों के लिए उपयोगी पाठ्य पुस्तकों के रूप में बालबोध जैन धर्म के चार भागों का आपने संपादन और प्रकाशन किया। महाराष्ट्र में जैन धर्म के ज्ञान के प्रसार में इन पुस्तकों का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण रहा। जैनकथासंग्रह (१९३०) तथा जैन कीर्तनतरंगिणी (१९३१) आपकी अन्य मराठी कृतियां हैं। रावसाहब ने लगभग २० वर्ष तक मासिक जैन बोधक का सम्पादन किया। इन वर्षों के इस पत्र के कई विशेषांक पुस्तकों जैसे ही संग्रहणीय हैं। कथा, कविता, इतिहास आदि विविध रूपों की बहुमूल्य सामग्री इन अंकों में उपलब्ध है। अपने समय के कई तरुण साहित्यिकों की कृतियाँ प्रकाशित करने के लिए रावसाहब ने हजारों रुपये व्यय किये। मराठी जैन साहित्य की प्रगति में उनका यह योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। जिनदास पार्श्वनाथ फडकुले आप सोलापूर के प्रतिष्ठित विद्वान् हैं। गद्य और पद्य पर आपका समान अधिकार है। प्राचीन संस्कृत-प्राकृत साहित्य को मराठी में रूपान्तरित करने में आप निरन्तर प्रयत्नशील रहे। आपकी प्रकाशित कृतियों में निम्नलिखित ग्रन्थों के अनुवाद प्रमुख हैं-समन्तभद्राचार्यकृत स्वयम्भूस्तोत्र (१९२०), आचार्य पात्रकेसरीकृत जिनेन्द्रगुणसंस्तुति तथा आचार्य विद्यानन्दकृत श्रीपुर पार्श्वनाथस्तोत्र (१९२०), कुन्दकुन्दाचार्य तथा पूज्यपादाचार्यकृत दशभक्ति (१९२१), शिवकोटियाचार्यकृत रत्नमाला (१९२१), सोमदेवसूरिकृत द्वादशानुप्रेक्षा (१९२३), आचार्य अमितगतिकृत तत्त्वभावना (१९२४), देवसेन आचार्यकृत भावसंग्रह (१९२७), मल्लिषेण आचार्यकृत नागकुमारचरित (१९२७), सकलकीति भट्टारक विरचित सुदर्शनचरित (१९२७) तथा श्रीपालचरित (१९६३), असग कविकृत वर्धमानचरित (१९३१), कुन्थुसागर मुनि विरचित बोधामृतसार (१९३८), पूज्यपाद आचार्यकृत दशभक्ति (१९५२) तथा नेमिदत्त पंडितकृत रात्रिभोजनत्यागकथा (१९५६)। आपकी सबसे विस्तृत और महत्त्वपूर्ण रचना जैन रामायण (१९६५) रविषेणाचार्य के पद्मपुराण का पद्यबद्ध रूपान्तर है। आपने पाण्डवपुराण, सिद्धान्तसारसंग्रह आदि ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद भी किया है। जैन बोधक को साहित्यिक रूप प्रदान करने में आपकी कविताओं और लेखों का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा। आधुनिक युग में आप जैसे निरन्तर साहित्य-साधना करने वाले ऋजुप्रकृति के विद्वान् दुर्लभ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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