Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 251
________________ २३८ मराठी जैन साहित्य का इतिहास के बाद आपका स्थान प्रमुख है।' जैनबोधक का सम्पादन कार्य आपने लगभग पांच वर्ष तक किया ( १९१४-१८)। इसके पहले तत्त्वार्थसूत्र और आत्मानुशासन ग्रन्थों का मराठी अनुवाद आप कर चुके थे। पंडित गोपाल दास बरैया की जैन सिद्धान्त प्रवेशिका और सार्वधर्म तथा पंडित जुगलकिशोर मुख्तारकृत ग्रन्थपरीक्षा पुस्तकों का भी मराठी अनुवाद आपने किया। पूना के विष्णुशास्त्री बापट ने जैन दर्शनसार नामक पुस्तक लिखी थी। इसमें की गई आलोचना का पण्डित वंशीधर ने हिन्दी में उत्तर दिया जिसे आपने मराठी में रूपान्तरित किया (१९१८)। आचार्य शान्तिसागरचरित (१९२४), जाति की मोमांसा ( १९२५ ), पंडित सदासुखकृत रत्नकरण्डवचनिका का अनुवाद ( १९५४ ), पंडित पन्नालालकृत महापुराण की आलोचना की समीक्षा ( १९५४ ) तथा भगवान् नेमिनाथ ( १९५८ ) यह सरल कथारूप पुस्तकये आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं । दत्तात्रय भिमाजी रणदिवे मिरजगाव (जि. अहमदनगर ) के इस कवि ने अल्प आयु में ही काव्य और उपन्यास लेखन में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की थी। कुलभूषणदेशभूषणचरित ( १९०९), नीलीचरित (१९१५), गजकुमारचरित (१९४९) जयकुमार-सुलोचना, सीताशीलपरीक्षा इन प्राचीन कथाओं के आधुनिक काव्यमय रूपान्तरों के अतिरिक्त जिनगुणालाप ( १९१३ ) यह भक्तिपूर्ण पदसंग्रह तथा रत्नकरण्ड का पद्य रूपान्तर ( १९१९ ) भी आप ने लिखा था । विभिन्न मासिक पत्रिकाओं में आपकी ६४ भावपूर्ण कविताएं समय समय पर प्रकाशित हुई। सुमति और जैन वाग्विलास इन मासिक पत्रों का सम्पादन भी आपने कुछ समय तक किया था। रूपिणी नामक आपका उपन्यास श्रेणिक की पौराणिक कथा पर आधारित था। अञ्जनासुन्दरी उपन्यास भी अन्जना-पवनंजय की पुराणप्रसिद्ध कथा का आधुनिक रूपान्तर था। जैन कथाओं के अतिरिक्त सर्व १. दोशीजी ने अपनी समस्त सम्पत्ति- (लगभग तीन लाख रुपये ) प्रदान कर जैन संस्कृति संरक्षक संघ की स्थापना की। इस संघ द्वारा संचालित जीवराज जैन ग्रन्थमाला में संस्कृत-प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी और कन्नड में ५० से अधिक ग्रन्थ छपे हैं। २. इनकी कविता का संग्रह इनके सुपुत्र ने १९३१ व १९४९ में दो संडों में प्रकाशित किया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284