Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 256
________________ वर्तमानकालीन मराठी जैन साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ २४३ कथाओं के आधुनिक सरस रूपान्तर इन्होंने लिखे हैं। हिन्दी-मराठी और मराठी-हिन्दी अमर कोश तथा सचित्र बाल विश्वकोश जैसी सर्वजनोपयोगी पुस्तकों का. सम्पादन भी आपने किया है । सुभाषचन्द्र अक्कोळे सोलापुर की जीवराज ग्रन्थमाला के कार्यवाहक के रूप में इन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया था। प्राचीन मराठी जैन साहित्य के विषय में आपके शोधकार्य का पहले उल्लेख कर चुके हैं । जसोधररास, परमहंसकथा, श्रेणिकचरित्र आदि प्राचीन रचनाओं के संपादन के अतिरिक्त महामानव सुदर्शन ( १९५५ ), पाण्डवकथा ( १९५६ ), सम्यक्त्वकौमुदी (१९५७ ), चक्रवर्ती सुभीम (१९६१) ये प्राचीन संस्कृत कथाओं के आधुनिक मराठी सरल रूपान्तर भी आपने लिखे हैं। सोलापुर-बाहुबली के मासिक सन्मति के सम्पादन में भी आपने कई वर्षों तक भाग लिया था। आप बारामती के तुलजाराम चतुरचंद महाविद्यालय के प्राचार्य रहे हैं । अन्य महत्त्वपूर्ण रचनाएँ ___ अब तक जिन लेखकों की पांच या अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई है उनका उल्लेख किया गया है। शेष रचनाओं में विभिन्न दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण कुछ रचनाओं का अब समयक्रम से उल्लेख करेंगे। ___ कारंजा.के भट्टारक देवेन्द्रकीति ( कालुरामजी ) के लगभग २०० हिन्दी पदों का मराठी अनुवाद सन् १८९५ में प्रकाशित हुया था, इसमें अनुवादक का उपनाम अनाथ बताया गया है । मूल पदों के समान ही यह अनुवाद सरस है। - फुलचन्द काळुसकर, कोल्हापुर, के भक्तिपूर्ण पदों का संग्रह जिनपद्यरत्नमाला १८९६ में प्रकाशित हुआ था। - ब्रह्मचारी जीतमल की रचना जिनसत्यनारायणपूजा वर्धा से १९०४ में प्रकाशित हुई थी। जैन समाज को हिन्दू पूजाविधि से छुटकारा दिलाने में इस पुस्तक का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा । भार० मार० बोबडे, अकोला, द्वारा सम्पादित जैन पुरोहित (१९१०) खथा जिनाचार-विधि (१९११) नामक पुस्तकें भी जैन समाज में हिन्दू परम्परा की विवाह विधि आदि का अन्धानुकरण रोकने में काफी सफल रहीं। ... माणिकसा मोतीसा खंडारे, कारंजा, की जिनपाकुसुममाला ( १९१२) में गायनोपयोगी भावपूर्ण पद प्राप्त होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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