Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 259
________________ २४६ मराठी जैन साहित्य का इतिहास वादिराजसूरि के यशोधरचरित का सरल रूपान्तर जयकुमार क्षीरसागर ने किया ( १९६० )। वादीमसिंहसूरि के क्षत्रचूडामणि का इन्होंने पद्यबद्ध रूपान्तर किया जो मासिक सन्मति में धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ है। पण्डित कैलाशचन्द्र जी के जैन धर्म का मराठी अनुवाद प्रेमचन्द्र शहा द्वारा प्रस्तुत किया गया ( १९६३ ) । अ. जि. हुपरे का गीतमहावीर यह श्रुतिमधुर गीतों का संग्रह भगवान् महावीर की जीवनकथा भावपूर्ण शब्दों में प्रस्तुत करता है ( १९६३ )। आपने मैनासून्दरी की कथा भी गीत रूप में प्रस्तुत की है। सोलापुर के श्राविकाश्रम की प्रमुख पण्डिता सुमतिबाई ने कई वर्ष तक मासिक जैन महिलादर्श के मराठी विभाग का सम्पादन किया है। रामायण ( १९६५ ) इस छोटी सी पुस्तक में इन्होंने पद्मपुराण की कथा आधुनिक रूप में वर्णन की है। नेमिचन्द्राचार्य के द्रव्यसंग्रह का सुबोध रूपान्तर भी आपने प्रस्तुत किया है ( १९६८)। हाल ही में आदिगीता नामक आपका विस्तृत काव्यग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। पहिला सम्राट् ( चन्द्रगुप्त मौर्य ) वासन्ती शहा की यह सरस पुस्तक (१९६५ ) जैन इतिहास की दृष्टि से पठनीय है। संस्कृतिगंगा इनकी दूसरी 'पुस्तक प्राचीन भारतीय नारियों की बोधप्रद कथाओं को प्रस्तुत करती है। कुन्दकुन्दाचार्य के समयसार की अमृतचन्द्राचार्य विरचित आत्मख्याति टीका का विशद विवेचन पंडित धन्यकुमार भोरे, कारंजा ने प्रस्तुत किया है ( १९६८)। इसके पहले इन्होंने पंडित टोडरमल विरचित मोक्षमार्गप्रकाशक का मराठी रूपान्तर भी किया था। गजकुमार शहा की पवनपुत्र हनुमान् तथा आदिकुमार बेडगे* की कुमार प्रीतिकर ये सरल कथारूप पुस्तकें जीवराज ग्रन्थमाला, सोलापुर से प्रकाशित हुई हैं ( १९६५)। शिरपुर के अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर के विषय में श्वेताम्बर परम्परा का दृष्टिकोण मुनि जम्बूविजय जी द्वारा प्रस्तुत किया गया था जिसे वालचन्द हिराचन्द ने मराठी में रूपान्तरित किया ( १९६० )। इसी क्षेत्र के विषय में दिगम्बर परम्परा का दृष्टिकोण नेमचन्द डोणगांवकर ने प्रस्तुत किया है। हेमचन्द्र वैद्य, कारंजा गत कुछ वर्षों से मासिक सन्मति के सम्पादकमंडल में हैं। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं का आधुनिक स्पष्टीकरण देते हुए बातचीत * ये अब मासिक सन्मति के संपादकमंडल में हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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