Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 260
________________ वर्तमानकालीन मराठी जैन साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ २४७. के ढंग में कैलास काका लेखमाला आपने सम्मति में लिखी थी जो अब पुस्तकरूप में प्रकाशित हुई है। सीता के अग्निदिव्य की कथा पर शीलसम्राज्ञी वाटिका भी आपने लिखी है। मुनि श्री समन्तभद्र के प्रवचनों से संकलित सुभाषितों का सानुवाद संग्रह उद्बोधन नाम से आपने संपादित किया है। ___ आधुनिक समय में बहुत थोड़े साधुओं ने साहित्यरचना की है। इनमें मकरध्वजपराजय रूपकात्मक नाटक के प्रणेता क्षु० आदिसागर प्रमुख हैं। आपने पद्मपुराण का काव्यबद्ध रूपान्तर भी किया है। पत्रिकाएं मराठी जैन साहित्य में आधुनिक युग का सूत्रपात मासिक जैन बोधक द्वारा सन् १८८४ में हुआ था। हिराचन्द नेमचन्द दोशी, कल्लाप्पा निटवे, जीवराज गौतमचन्द दोशी तथा रावजी सखाराम दोशी के सम्पादन में इस पत्र ने उत्तरोत्तर प्रगति की। आजकल यह वर्द्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा साप्ताहिक रूप में सम्पादित हो रहा है। जैन विद्यादानोपदेशप्रकाश मासिक पत्र जैन सभा, वर्धा के मुखपत्र के रूप में बकाराम पैकाजी रोडे द्वारा लगभग दस वर्ष तक सम्पादित एवं प्रकाशित हुआ था। इसका प्रारम्भ सन् १८९२ में हुआ था। पन्नालाल जैन, वर्धा द्वारा १८९८ में प्रारम्भ किये गये मासिक जैन भास्कर में हिन्दी और मराठी दोनों भाषाओं के लेख थे। दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा के मुखपत्र के रूप में अण्णासाहेब लट्ठ द्वारा प्रगति-जिनविजय साप्ताहिक सन् १९०१ में शुरू किया गया था। सभा के निर्णयानुसार समय-समय पर विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता इसका सम्पादन करते रहे हैं । आजकल यह बी. बी. पाटील के सम्पादन में प्रकाशित हो रहा है। तात्यासाहेब पांगल द्वारा सम्पादित मासिक वन्दे जिनवरम् तथा गणपत नारायण चवडे, वर्धा के मासिक जैन बन्धु का ऊपर उल्लेख कर चुके हैं। मासिक सुमति, वर्धा, कवि रणदिवे के सम्पादन में कुछ वर्ष प्रकाशित हुआ था। इन्हीं द्वारा जैन वाग्विलास मासिक भी शुरू किया गया था ( १९१३)। इसी समय, के आसपास जयकुमार देवीदास चवरे द्वारा मासिक जैन भाग्योदय का कुछ वर्ष सम्पादन किया गया था। रामचन्द गुलाबचन्द व्होरा, सोलापुर द्वारा मासिक प्रभावना सन् १९२५ में प्रारम्भ किया गया था। वा० दे० धुमाळे, कारंजा तथा के० पी० भागवतकर, नागपुर ने सन् १९३५ में मासिक सार्वधर्म का प्रकाशन प्रारम्भ किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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