Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 243
________________ २३० बोप १. इनकी एक छोटी सी रचना तीर्थंकर भूपाली प्राप्त है । प्रातः काल जिननाम स्मरण करने के लिए रचा हुआ यह गीत १६ पद्यों का है । लेखक के गुरु का नाम दयालकीर्ति था । इनकी रचना सन् १८०९ के हस्तलिखित में मिली है अतः इससे पहले इनका समय निश्चित है, किन्तु कितने पहले यह मालूम नहीं हो सका । ' मराठी जैन साहित्य का इतिहास ! महतिसागर 7 इनका जन्म सैतवाल जाति में हुआ था। ये कारंजा के भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे । सन् १७७२ के आसपास इनका जन्म समय अनुमानित है । लगभग ४० वर्ष की आयु तक विदर्भ में इन्होंने निवास किया तथा काफी साहित्य रचना की। फिर दक्षिण महाराष्ट्र के हुमड-गुजर समाज के श्रावकों में धर्म प्रसार करते हुए इन्हें काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई । सन् १८३२ में दहिगांव में इनका स्वर्गवास हुआ था । रिद्धपुर में सन् १८०१ में रचित २९ श्लोकों की रविव्रतकथा इनकी प्रथम रचना प्रतीत होती है । बालापुर में सन् १८१० में १४७ श्लोकों में आदिनाथ पंचकल्याणककथा की रचना इन्होंने की थी । दशलक्षण व्रतकथा ( ९४ पद्य ), षोडशकारणव्रतकथा ( ५२ पद्य ) व रत्नत्रयव्रतकथा ( ३८ पद्य ) । इनमें महतिसागर ने समय और स्थान का उल्लेख नहीं किया है । इन व्रतकथाओं की अपेक्षा महतिसागर की स्फुट रचनाएँ - अभंग और पद-अधिक भावपूर्ण और महत्त्व की हैं । तीर्थंकरस्तुति, पंचपरमेष्ठीस्तुति, दानप्रशंसा आदि विषयों पर लगभग २०० अभंग हैं | संबोधसहस्रपदी में विविध धार्मिक विषयों पर उपदेशप्रद एक हजार पद लिखने का संकल्प महतिसागर ने किया था, किन्तु ६४ पदों की रचना के बाद उनका स्वर्गवास होने से यह कार्य अधूरा रहा ! अरहंत, पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पंचपरमेष्ठी; गुरु देवेन्द्र कीर्ति तथा देवी ज्वालामालिनी की आरतियाँ इन्होंने लिखी हैं, इनकी सम्मिलित पद्य संख्या ५० है । गुरु देवेन्द्रकीर्ति के जीवन का परिचय देते हुए १० पद्यों की एक लावणी की रचना भी इन्होंने की है - 1 संस्कृत में अरहंतपूजा और ज्वालामालिनीपूजा ये इनकी रचनाएँ भी प्राप्त हैं । महतिसागर की रचनाएँ सरल-सुबोध भाषा और १. प्रा० म०, पृष्ठ ११२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284