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गंगादास
ये मूलत: गुजराती थे और कारंजा के भट्टारक धर्मचन्द के शिष्य थे । गुरु की आज्ञा से मराठी में भी कुछ रचनाएँ इन्होंने लिखीं । इनमें सबसे बड़ा पार्श्वनाथभवान्तरगीत है जिसे कवि ने डफगान कहा है- डफ नामक वाद्य की संगत के साथ यह गाया जाता था । इसमें ४७ कडवकों में भगवान् पार्श्वनाथ के नौ पूर्वजन्मों का वर्णन है । इसकी रचना शक १६१२ ( सन् १६९०) में हुई थी । चक्रवर्ती - पालना गंगादास की दूसरी रचना २१ कडवकों की है । इसमें भरत चक्रवर्ती के शिशु अवस्था में झूले में झूलने का मधुर वर्णन है । २ नेमिनाथ भारती ( ४ कडवक) 3 तथा श्रीपुर- पार्श्वनाथ आरती (५ कडवक) ये गंगादास की अन्य मराठी रचनाएं हैं। गुजराती में रविव्रतकथा, त्रेपन क्रिया विनती और जटामुकुट तथा संस्कृत में पूजा, संमेदाचलपूजा एवं तुंगीबलभद्रपूजा ये इनकी अन्य हेम कीर्ति
पंचमे रुपूजा, क्षेत्रपालरचनाएँ उपलब्ध हैं ।
मराठी जैन साहित्य का इतिहास
पट्टशिष्य थे । इनके द्वारा सन्
ये लातूर के भट्टारक विद्याभूषण के १६९६ से १७३१ तक स्थापित पाँच मूर्तियों और यन्त्र नागपुर और सिन्दी (वर्धा) के मन्दिरों में उपलब्ध हैं । मराठी में इनकी चार छोटी रचनाएँ उपलब्ध हैं । इनमें अरहंतपूजा (९ पद्य) और बारसभा आरती ( ३ पद्य) प्रकाशित हो चुके हैं" तथा दशलक्षणधर्म आरती ( ४ पद्य) एवं तीर्थवन्दना ( १९ पद्य ) अप्रकाशित हैं । इन्होंने गुजराती में अरहंतपूजा तथा संस्कृत में पार्श्वनाथस्तोत्र व पद्मावतीस्तोत्र की भी रचना की थी ।
१. प्रा० म०, पृष्ठ ६८ ।
१९०४ ) में प्रकाशित ।
२. जैनी पालने ( प्र ० जिनदास चवडे, वर्धा, ३. आरती संग्रह (प्र० जिनदास चवडे, वर्धा, ४. आरती संग्रह (प्र० जिनदास चवडे, वर्धा, ५. पहली कृति जिनेन्द्र मंगलआराधना ( प्र० जयकुमार दोडल, हिंगोली, सन् १९५६) में तथा दूसरी आरती संग्रह (प्र० जिनदास चवडे, वर्धा, सन् १९०४ ) में प्रकाशित हुई थी ।
६. हस्तलिखित हमारे संग्रह में है ।
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१९१०) में प्रकाशित ।
१९२६) में प्रकाशित ।
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