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प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य
२१७ कष्ट के बावजूद वह राजरानी बनी । ब्रह्मजिनदास की गुजराती कथा के आधार पर यह रचना लिखी गई थी। विशालकीति (द्वितीय)
ये देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। इनका समय निश्चित नहीं है, किन्तु इनकी रचना धर्मपरीक्षा की एक प्रति शक १६१० की लिखी उपलब्ध है, अतः सन् १६८८ से पहले के ये कवि हैं। धर्मपरीक्षा में ५ अध्याय और ९५८ ओवी हैं। विशालकीर्ति ने ब्रह्मजिनदास के रासभाषा ( गुजराती ) के ग्रन्थ का यह मराठी रूपान्तर तैयार किया तथा ज्ञानसागर ने इसे लिपिबद्ध किया, ऐसा प्रशस्ति से ज्ञात होता है । इस ग्रन्थ में हिन्दू पुराणों की कई कथाओं की अविश्वसनीयता विस्तृत उदाहरणों द्वारा स्पष्ट की गई है।' पद्मकीति
ये लातूर के भट्टारक विशालकीर्ति के पट्टशिष्य थे। इनकी एक छोटी सी रचना पार्श्वनाथ-आरती उपलब्ध है जिसमें ५ कडवक हैं तथा चक्रपुर के भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति है। पद्मकीर्ति द्वारा सन् १६८० और १६८६ में स्थापित कुछ मूर्तियां उपलब्ध हैं ।२ राय
इनकी एक छोटी सी रचना जिनवरविनती उपलब्ध है जिसमें १६ श्लोक हैं। निर्मलग्राम में शक १६०६ ( सन् १६८४ ) में यह रचना पूर्ण हुई थी, ऐसा अन्तिम श्लोक से ज्ञात होता है। एक श्लोक में कवि ने अपने पिता का नाम मल्लाजी बताया है। रत्नसा
इन्होंने शक १६१० और १६१५ में कई मराठी जैन ग्रन्थों की प्रतियां तैयार की थीं। देउलगांव के बघेरवाल जाति के साहुआ गोत्र में इनका जन्म हुआ था। इन्होंने दामा पंडित के जम्बूस्वामीचरित का परिवधित संस्करण तैयार किया था। इस संस्करण में १४ अध्याय हैं। रत्नसा ने कारंजा के सेनगण के भट्टारक जिनसेन का गुरुरूप में उल्लेख किया है।
१. प्रा० म०, पृष्ठ ६४ । २. प्रा० म०, पृष्ठ ६६ । ३.४. प्रा० म०, पृष्ठ ६६-६७ ।
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