Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 232
________________ प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य २१९ मकरन्द ये भ० हेमकीति के शिष्य थे, अतः इनका समय भी सन् १६९६ से १७३॥ के आस-पास समझना चाहिए। इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना रामटेक इन्द' में १६ पद्य हैं। नागपुर से ३० मील उत्तरपूर्व में रामटेक नगर है, जहाँ के भगवान् शान्तिनाथ की महिमा का वर्णन इस गीत में है। मन्दिर के प्राकार आदि के निर्माण में भाग लेनेवाले श्रीमान् लेकुरसंगवी और लाड गाहानकारी का इसमें उल्लेख है। समीप के हिन्दू मन्दिरों का भी कवि ने उल्लेख किया है। महीचन्द्र __ये लातूर के भट्टारक विशालकीति के पट्टशिष्य थे। मराठी में इनकी ग्यारह रचनाएं उपलब्ध हैं। इनमें सबसे बड़ी रचना आदिनाथपुराण' शक १६१८ ( सन् १६९६ ) में आशापुर में पूर्ण हुई थी। इसमें १५ अध्याय और ३२५३ ओवी हैं। ब्रह्मजिनदास के आदिनाथरास पर आधारित इस पुराण में प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव की कथा पूर्वजन्मों के वर्णन के साथ विस्तार से कही गई है। महीचन्द्र की दूसरी बड़ी रचना सम्यक्त्वकौमुदी में १३ अध्याय और १६८१ ओवी हैं। इसकी कथाएँ दयासागर की सम्यक्त्वकौमुदी के समान ही हैं। इनकी छोटी रचनाओं का विवरण इस प्रकार हैनंदीश्वरव्रतकथा में १५० ओवी हैं। आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन में शुक्ल अष्टमी से पौर्णिमा तक अष्टाह्निका उत्सव मनाया जाता था जिसमें नंदीश्वर द्वीप के जिन-मंदिरों की पूजा होती थी। इसी व्रत के पालन की महिमा इस कथा में वर्णित है। इसे अठाईव्रतकथा भी कहा गया है। गरुडपंचमीव्रतकथा' में ९१ ओवी हैं । श्रावण शुक्ल पंचमी और षष्ठी को उपवासपूर्वक १. तीर्थवन्दन संग्रह (जीवराज ग्रंथमाला, शोलापुर, १९६५) में प्रकाशित (पृष्ठ ९७.-९९) सं० वि० जोहरापुरकर । २.प्र. जिनदास चवडे, वर्धा, १९०१ । ____३. प्रा० म०, पृष्ठ ६९, आगे की रचनाओं का परिचय भी इसी स्थान पर प्राप्त हो सकता है। ४. कोंढाली (जि. नागपुर) में उपलब्ध पोथी में इसका रचना काल शक १६०७ बताया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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