Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Author(s): Ambalal P Shah
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 228
________________ प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य २१५ के आसपास निश्चित होता है। ये पैठन नगर में रहते थे। इनकी २० रचनाएं' मराठी में उपलब्ध हैं। तीर्थवन्दना में ३६ श्लोक हैं तथा निर्वाणकाण्ड में वर्णित तीर्थों और कुछ अन्य तीर्थों का संक्षिप्त वर्णन है। कचनेर ग्राम ( औरंगाबाद के पास ) के मन्दिर के मूल नायक पार्श्वनाथ की आरती में ५ पद्य हैं।' भूपाली में ७ पद्य हैं, यह प्रातःकाल में जिननामस्मरण करने के लिए लिखा गया गीत है। कोरंजा के मन्दिर के मूलनायक चन्द्रप्रभ को आरती में ५ पद्य हैं। त्रिकाल तीर्थकर पूजा में ९ पद्य हैं, भूतकाल, वर्तमानकाल व भविष्यकाल में होने वाले तीर्थंकरों की यह पूजा है ।२ नेमिनाथ पालना १८ पद्यों का गीत है, जिसमें बालक नेमिनाथ के झूले में झूलने का वर्णन है। 3 गुरुगीत में कारंजा के भ० धर्मभषण की स्तुति है। जिनमाता के १६ स्वप्नों का वर्णन ६ पद्यों के गीत में है । नेमिनाथ-भवान्तर ११ पद्यों का गीत है, जिसमें माता शिवादेवी और नेमिनाथ के संवाद के रूप में उनके पूर्वजन्मों का संक्षिप्त वर्णन है। गोम्मटस्वामी स्तोत्र के ६ श्लोकों में श्रवणबेलगोल के भ० बाहुबली की स्तुति है । बालक छाटी ११ पद्यों का गीत है, बाल रक्षा के लिए प्रार्थना का यह गीत है। आदिनाथ आरती में ६ पद्य हैं। महाराष्ट्र में प्रचलित कुछ खेलों में बालक-बालिकाएं नाचते हुए गीत गाते हैं, ऐसे कुछ गीत भी चिमना पंडित ने लिखे हैं । इनके नाम और पद्य संख्या इस प्रकार हैंफुगडी ३, अंपा ५, पिंगा ४, लयलाखोटा ५, चेंडूफली ११ टिपरी (दो गीत) ४ और ६ । इन गीतों के माध्यम से खेलों में भी धार्मिक भावनाओं का समा. वेश किया गया है। चिमना पंडित की सबसे बड़ी रचना अनन्तव्रतकथा में ५८ कडवक हैं । गीत के रूप में इसमें अनन्तव्रतपालन के फल की कथा का वर्णन है। इसकी प्रशस्ति में पैठन नगर का और गुरु अजितकीति का उल्लेख है । पैठन के मुनिसुव्रत की विनती यह चिमना पंडित की गुजराती रचना भी उपलब्ध है। १. तीर्थवन्दना और पाश्वनाथ आरती हमारे तीर्थवन्दन संग्रह ( जीवराज ग्रंथमाला, शोलापुर, १९६५ ) में प्रकाशित हुए हैं। २. जिनेंद्र मंगल आराधना (प्र. जयकुमार दोडल, हिंगोली, १९५६ ) में ये तीन रचनाएँ प्रकाशित हैं। ३. जैनी पालने (प्र. जिनदास चवडे, वर्धा, १९१० ) में प्रकाशित । ४. गुरुगीत और आगे की रचनाओं के लिए देखिए प्रा० म०, पृष्ठ ५६-५७ ॥ Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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