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राक्षसवंश और वानरवंशकी उत्पत्ति ।
१३.
चित्तसुंदरीको इन्द्रके साथ संभोग करनेका दोहद - इच्छाहुआ । मगर वह दुर्वचन कहने योग्य, और दुष्पूर- पूरा न होने योग्य था इस लिए उसकी शरीरकी दुर्बलताका कारण होगया । सहस्रार ने जब बहुत आग्रहके साथ उसका कारण पूछा, तब उसने लज्जासे नम्र मुखकर पतिको अपने दोहदकी बात कही । सहस्रारने विद्याबल से इन्द्रका रूप धारण कर, उसको इन्द्र पन समझा, उसका दोहद पूर्ण किया । समय पर पूर्ण पराक्रमी पुत्र जन्मा । माताको इन्द्रके संभोगका दोहद हुआ था इस लिए लड़केका नाम 6 इन्द्र ' रक्खा गया । वह जब युवक हुआ तव, सहस्रारने विद्याओं और भुजाओंके पराक्रमी पुत्रको राज सौंप दिया और आप धर्म ध्यानमें दिन बिताने लगा । इन्द्रने प्रायः सब विद्याधर राजाओंको अपने वशमें कर लिया । और इन्द्रके दोहदसे उत्पन्न हुआ था इस लिए वह अपने आपको साक्षात इन्द्र ही समझने लगा। उसने इन्द्रहीकी भाँति, चार दिग्पाल, सात सेनाएँ तथा सेनापति, तीन प्रकारकी पर्षदा, वज्र आयुध, ऐरावत हाथी, रंभादि वारांगनाएँ, बृहस्पति नामक मंत्री और नैगमेषी नामक पत्तिसैन्यका नायक आदि सब स्थापन किये । इस तरह इन्द्रकी सारी संपदा के नामधारण करनेवाले विद्याधरों पर हूकूमत करता हुआ; वह अपने आपको 'इन्द्र' कहलवाने लगा, और अखंड राज्य करने लगा। ज्योतिःपुरके राजा 'मयूरध्वजकी' स्त्री