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जन रामायण प्रथम सर्ग।
प्रभो ! इस वानरके साथ मेरा वैर क्यों हुआ?" मुनिने उत्तर दिया:-" श्रावस्ती नगरीमें तू एक मंत्रीका लड़का था और यह वहीं एक लुब्धक-पारधी-था । एकवार तू दीक्षा लेकर काशीमें जाता था; लुब्धक भी शिकारके लिए काशीसे जा रहा था। उसने तुझको सामने आते देखा। तेरे वेशसे उसने अपशकुन समझा और बाण मारकर तुझे धराशायी कर दिया। वहाँसे मरकर तू महेंद्रकल्पमें-चौथे देवलोकमें-देवता हुआ। और वहाँसे चवकर यहाँ लंकाधिपति हुआ है। यह लुब्धक भी मरकर नरकमें गया और वहाँसे आकर यह बंदर हुआ था ।"
वैरका दोनोंने कारण समझा । असाधारण उपकारी मुनिकी वंदना कर, लंकापतिकी आज्ञा ले वह देवता अन्तान हो गया । तडिकेशने अपने पूर्वभवका स्मरण कर अपने 'सुकेश' नामक पुत्रको राज्य दे, दीक्षा ले, लप कर, परमपदको पाया । राजा घनोदधि भी अपने “किष्किधी' नामके पुत्रको किष्किंधाका राज्य दे, दीक्षा ले, मोक्षको गया।
१. विजयसिंह और किष्किंधीका युद्ध । इस समय वैताब्यगिरिपर 'रथनुपुर ' नगरमें विधाधरोंका राजा ' अशनिवेग' राज्य करता था। उसके सशक्त भुजदंडोंके समान ‘विजयसिंह ' और 'विद्युद्वेग' नामके दो पुत्र थे। उसी गिरिपर 'आदित्यपुरमें मंदि