Book Title: Jain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 193
________________ आचार्य पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि और आचार्य अकलंकदेवकृत तत्त्वार्थवार्तिक का तुलनात्मक अध्ययन _ डॉ० फूलचन्द प्रेमी तत्त्वार्थसूत्र जैनधर्म-दर्शन के इतने मूलभूत तत्त्वों का प्रामाणिक संग्रह है कि इसे दिगम्बर एवं श्वेताम्बर-ये दोनों ही सम्प्रदाय थोड़े बहुत पाठ-भेद के साथ प्रमाण-भूत मानते है। दोनों परम्पराओं के आचार्यों ने इस पर दशाधिक टीका-ग्रन्थ तथा १६-२० वीं शती के अनेक विद्वानों ने विविध भाषाओं में विवेचनात्मक टीकायें लिखी है। इसीलिए इस सूत्र ग्रन्थ को दोनों परम्पराओं में एकता स्थापित करने का मूल आधार बनाया जा सकता है। इस ग्रन्थ की रचना मूल जैन आगमिक परम्परा के विशिष्ट ग्रन्थों तथा आचार्य पुष्पदन्त भूतबलि द्वारा रचित षट्खण्डागम एवं आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रणीत ग्रन्थों के बीज लेकर की गई है और जैन धर्म-दर्शन के विशाल वृक्ष को पल्लवित, पुष्पित एवं फलित किया गया है। इसीलिए इस ग्रन्थ पर टीकायें और व्याख्यायें लिखने में जैनाचार्यों और विद्वानों ने अपने को गौरवान्वित माना। इस ग्रन्थ पर निम्नलिखित प्राचीन-टीका ग्रन्थ प्रमुखतः उपलब्ध हैं जैन साहित्य में उल्लिखित प्रमाणों के आधार पर तीसरी शती के आचार्य स्वामी समन्तभद्र ने तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ पर सोलह सौ श्लोक प्रमाण' गंधहस्ति-महाभाष्य नामक टीका ग्रन्थ की रचना की थी जो आज अनुपलब्ध है। श्वेताम्बर परम्परानुसार इस ग्रन्थ के मूल रचयिता वाचक उमास्वाति ने स्वयं “तत्त्वार्थाधिगमभाष्य" नाम से स्वोपज्ञ टीका सहित मूल ग्रन्थ की रचना की थी। छठी शती के आचार्य देवनन्दी पूज्यपाद ने इस पर सर्वार्थसिद्धि नामक टीका ग्रन्थ की रचना की। छठी-सातवीं शती के अपभ्रंश भाषा के महाकवि आचार्य जोइंदुदेव ने इस पर संस्कृत में 'तत्त्वप्रकाशिका' नामक टीका लिखी। • रीडर एवं अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी १. पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री के अनुसार गन्धहस्तिमहाभाष्य का श्लोक परिमाण कहीं चौरासी हजार तो कहीं छियानवे हजार बतलाया गया है। देखिए-जैन साहित्य का इतिहास, प्रथम भाग, पृ० २७८ (सम्पादक)

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