Book Title: Jain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

Previous | Next

Page 220
________________ भट्टाकलंकदेव का उत्तरवर्ती आचार्यों पर प्रभाव युक्तियों से इस प्रकरण को समृद्ध किया है । माणिक्यनन्दि : 181 सूत्रकार माणिक्यनन्दि प्रभाचन्द्र के गुरु थे। इनका समय ई० ६६३-१०५३ है। इन्होंने अकलंक वचो अम्भोधि से न्याय विद्यामृतका उद्धार करके ही परीक्षामुखसूत्र रचा है। विशेष वितरण के लिए परीक्षामुख सूत्रों की तुलना में न्यायविनिश्चय और लघीयस्त्रय आदि ग्रन्थों के अवतरण देखना चाहिए । शान्तिसूरि : वार्तिकंकार आचार्य शान्तिसूरि ( ई० ६६३ -१०४७) ने जैन तर्क वार्तिक में न्यायविनिश्चय के भेद - ज्ञानात् श्लोक को तथा सिद्धिविनिश्चय के असिद्धः सिद्धसेनस्य श्लोक को थोड़े परिवर्तन के साथ ले लिया है । इन्होंने अकलंक के त्रिधा श्रुतमविप्लवम् इस प्रमाण संग्रहीय 'मत की आलोचना की है ( शेष के लिए देखो न्यायावतारसूत्र वार्तिक तुलना में न्यायविनिश्चय और लधीयस्त्रय के अवतरण ) । वादिराज : स्याद्वाद विद्यापति वादिराज ( ई० १०२५) न्यायविनिश्चय के प्रख्यात विवरणकार हैं। ये अकलंक वाङ्मय के गंभीर अभ्यासी रहे हैं और इन्होंने न्यायविनिश्चय विवरण . में श्लोकों के चार-पांच अर्थ तक किये है। गूढ़ार्थ अकलंक वाङ्मय रूपी रत्नों को अगाध भूमि से इन्होंने अनन्तवीर्य के वचनदीप की सहायता से खोजा और पाया था । इन्होंने अकलंक के समग्र वाङ्मय से उद्धरण लिये हैं तथा उनकी स्थापित पद्धतिका समर्थन किया है। प्रभाचंन्द्र : सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य प्रभाचन्द्र ( ई० ६८० - १०६५) में अकलंकदेव के . लघीनस्त्रय पर लघीयस्त्रयालंकार न्यायकुमुदचन्द्र नाम की १८ हजार श्लोक प्रमाण टीका रची है। इन्होंने अकलंक न्याय का अनन्तवीर्य की उक्तियों से शतशः अभ्यास और विवेचन किया है। इनके सुप्रसिद्ध न्यायकुमुदचन्द्र नाम के टीकाग्रन्थ और प्रमेयकमलमार्तण्ड में अकलंक वाङ्मय आधारभूत दीपस्तम्भ रहा है। इन्होंने अकलंक के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि बड़ी विनम्रता से चढ़ाई है। इनकी आत्मानुशासन तिलक टीका में न्यायविनिश्चय का 'भेदज्ञानात् प्रतीयेते' श्लोक उद्धृत है। • अनन्तवीर्य : प्रमेयरत्नमालाकार अनन्तवीर्य ( ई ११ वीं सदी) ने प्रभाचन्द्र के प्रमेयकमलमार्तण्ड के अनन्तर अकलंकवाङ्मयोद्धृत परीक्षामुख पर प्रमेयरत्नमाला टीका बनाई है । इन्होंने

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238