Book Title: Jain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

Previous | Next

Page 224
________________ अकलंकदेव के अनुसार शुभोपयोग के स्वामी डा० रतनचन्द्र जैन कुछ आधुनिक विद्वान् मानते हैं कि मिथ्यादृष्टि को शुभोपयोग नहीं होता। वह जो उपरिम ग्रैवेयक तक जाने का पुण्यबन्ध करता है, शुभयोग के द्वारा करता है, शुभोपयोग के द्वारा नहीं (मोक्षमार्ग प्रकाशक, धरियावद प्रकाशन, प्रस्तावना-सम्पादकीय, पृष्ठ १०) इस विषय में भट्ट अकलंकदेव का मत क्या है? इस पर यहाँ विचार किया जा रहा है। मिथ्यात्वोदय की निवृत्ति शुभपरिणाम से : ___ भट्ट अकलंकदेव का मत है कि मिथ्यादृष्टि जीव के मिथ्यात्वोदय की निवृत्ति शुभपरिणाम के प्रताप से होती है। उन्होंने परिणाम, प्रणिधान और उपयोग को एकार्थक बतलाया है- 'प्रणिधानम् उपयोगः परिणामः इत्यनर्थान्तरम्' (राजवार्तिक १/१) वे मिथ्यात्वोदयं की निवृत्ति के विषय में चर्चा करते हुए लिखते हैं.: “मिथ्यात्वोदयनिवृत्तिः कथमिति चेत्? उच्यते- अनादिमिथ्यादृष्टिर्भव्यः सादिमिथ्यादृष्टिा प्रथमसम्यक्त्वं गृहीतुमारभमाणः शुभपरिणामाभिमुखः अन्तर्मुहूर्तमनन्तगुणवृद्ध्या वर्धमानविशुद्धिः संक्लेशविरहितः वर्धमानशुभपरिणामप्रतापेन सर्वकर्मप्रकृतीनां स्थिति हासयन् अशुभप्रकृतीनामनुभागबन्धमपसारयन् शुभप्रकृतीनां रसमुद्धर्तयन् त्रीणि करणनि कर्तुमुपक्रमते। (रा० वा० ६१) अर्थ- मिथ्यात्व के उदय की निवृत्ति कैसे होती है ? बतलाते हैं- अनादि मिथ्यादृष्टि भव्य अथवा सादि मिथ्यादृष्टि जन प्रथम सम्यक्त्व के ग्रहण का प्रयत्न करता है तब शुभपरिणामाभिमुख होकर अन्तर्मुहूर्त में अनन्तगुणवृद्धिपूर्वक विशुद्धि को बढ़ाते हुए संक्लेश से रहित हो, बढ़ते हुए शुभपरिणामों के प्रताप से समस्त कर्मप्रकृतियों की स्थिति को घटाता हुआ, अशुभप्रकृतियों के अनुभाग का ह्रास करता हुआ तथा शुभप्रकृतियों के अनुभाग को बढ़ाता हुआ तीन करणों को प्रारम्भ करता है___अकंलक स्वामी के इस विवेचन से सिद्ध होता है कि मिथ्यादृष्टि को शुभोपयोग होता है और उसके द्वारा ही वह मिथ्यात्व का उपशम कर प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्त • १३७, आराधनागनर, कोटरा, भोपाल-४६२००३

Loading...

Page Navigation
1 ... 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238