Book Title: Jain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

Previous | Next

Page 223
________________ 184 जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान महासेनकृत भी कहा जाता है। इस पर पाण्डवपुराण के कर्ता शुभचन्द्र ने वृत्ति लिखी थी, यह पाण्डवपुराण की प्रशस्ति से ज्ञात होता है। विमलदासगणि ने अकलंक वाङ्मय का आलेखन किया था और सकलादेश, विकलादेश के प्रकरण में कालादि आठ दृष्टि से भेदाभेद निरूपण करके उसका पर्याप्त प्रसार किया है। यशोविजय : नव्यव्याययुगप्रवर्तक उपाध्याय यशोविजयजी (ई०,१७वीं सदी) अकलंक न्याय के गहरे अभ्यासी और समर्थक थे। इनके जैनतर्कभाषा, शास्त्रवार्तासमुच्चय टीका गुरुत्त्वविनिश्चय आदि ग्रन्थों में अकलंक वाङ्मय के उद्धरण तो हैं ही, गुरुतत्त्व विनिश्चय में मलयगिरिकृत अकलंक की समालोचना का सयुक्तिक उत्तर भी है। इन्होंने अष्टशती के भाष्य अष्टसहनी पर अष्टसहस्री विवरण रचकर अकलंक न्याय को समुज्ज्वल किया है। ___इनके सिवाय वादीभसिंहसूरि की स्याद्वादसिद्धि, वसुनन्दि की आप्तमीमांसावृत्ति, गुणरत्न की षड्दर्शनसमुच्चय वृहद्वृत्ति, मल्लिषेण की स्याद्वादमंजरी, भावसेन के विश्वतत्त्वप्रकाश, नरेन्द्रसेन की प्रमाणप्रमेयकलिका, अजितसेन की न्यायमणिदीपिका (प्रमेयरत्नमाला टीका) और चारुकीर्ति पंडिताचार्य के प्रमेयरत्नमालालंकार आदि में भी अकलंक न्याय के शुभ दर्शन होते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238