Book Title: Jain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Author(s): Kamleshkumar Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 191
________________ जैन - न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान इसका भरना कठिन है। प्रतिदिन जो उसमें डाला जाता है, वही समाकर मुँह बाने - लगता है। शरीर आदि से ममत्व शून्य व्यक्ति परम सन्तोष को प्राप्त होता है ।' अन्य मानवीय मूल्य - श्री भट्ट अकलंकदेव ने 'तत्त्वार्थवार्तिक' में विभिन्न प्रसंगों में अनेक मानवीय मूल्यों का उल्लेख किया है जिन्हें जीवन में स्थान देने से व्यक्ति में गुणात्मक विकास होता है, यथा- दृढ़ मित्रता, दयालुता, स्वकार्य पटुता, सर्वधर्मदर्शित्व, पाण्डित्य, गुरुदेवता पूजनरुचि, निर्वेर, वीतरागता, शत्रु के भी दोषों पर दृष्टि न देना, निन्दा न करना, पाप कार्यों से उदासीनता, श्रेयोमार्ग रुचि, चैत्य, गुरु, शास्त्रपूजा', प्रकृति भद्रता, सुखसमाचार कहने की रुचि, रेत की रेखा के समान क्रोध आदि, सरल व्यवहार, अल्पारम्भ, अल्पपरिग्रह, दुष्ट कार्यों से निवृत्ति, स्वागत तत्परता, कम बोलना, प्रकृति मधुरता, लोकयात्रानुग्रह, औदासीन्यवृत्ति, ईर्षारहित परिणाम, अल्पसंक्लेश, कापोतपीत लेश्यारूप परिणाम, मरणकाल में धर्मध्यानपरिणति, ' कल्याणमित्र संसर्ग, आयतन सेवा, सद्धर्म श्रवण, स्वगौरव दर्शन, निर्दोषप्रोषधोपवास, . तप की भावना, बहुश्रुतत्व, आगम - परता, कषायनिग्रह; पात्रदान, पीतपद्मलेश्या परिणाम', अविसंवादन, धार्मिक व्यक्तियों के प्रति आदरभाव, संसारभीरुता, अप्रमाद, निश्छलचारित्र' आत्मनिन्दा, परप्रशंसा, परसद्गुणोद्भावन, आत्म- असद्गुणोद्भावन, गुणी पुरुषों के प्रति विनयपूर्वक नम्रवृत्ति और ज्ञानादि होने पर भी तत्कृत उत्सेक - अहंकार न होना, पर का तिरस्कार न करना, अनौद्धत्यं, असूया, उपहास - बदनामी आदि न करना, सधर्मी व्यक्तियों का सम्मान, उन्हें अभ्युत्थान अंजलि नमस्कार आदि करना । 152 . इस प्रकार हम देखते हैं कि भट्ट अकलंकदेव ने मानवों को अपने सदृश बनाने के लिए 'तत्त्वार्थवार्तिक' में पद-पद पर अनेकानेक मूल्यों की प्रतिष्ठापना की है और वे उन मूल्यों को मूल्यवान् बनाने में समर्थ सिद्ध हुए हैं। आज के युग में जबकि हर क्षेत्र में मूल्यों का संकट है, ऐसे समय में मानवीय मूल्यों की पहचान और उनहें महत्ता प्रदानकर जीवन में स्थान देना होगा तभी मानव-मानव कहलाने के योग्य होगा । श्री १. तत्त्वार्थवार्तिक, ६/६/२७ २. वही, ४/१२/१० ३. वही, ६/५/७, ६/१२/१३, ६/१७ ४. वही, ६/१७ ५. वही, ६ / २० ६. वही, ६ / २३ ७. वही, ६ / २६१-४

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