Book Title: Jain Nyaya Khand Khadyam Author(s): Badrinath Shukla Publisher: Chowkhamba Sanskrit Series View full book textPage 6
________________ प्राकथन दर्शन भारत की महनीयतम उपलब्धि है, इसकी तुलना संसार में अन्यत्र अप्राप्य है, भारत के तत्त्वान्वेषी मनीषियों का इस बात में सर्वथा ऐकमत्य है कि दर्शन सम्पूर्ण विश्व के समस्त मनस्तापों की अचूक औषध है, यह वह अपूर्व अञ्जन है जो मनुष्य की दृष्टि को निर्मल बनाकर जगत् के गूढ़तम रहस्यों को देखने की क्षमता प्रदान करता है, यह वह शीतल अनुलेप है जो मनुष्य के बाह्य और आन्तर तापों का निवारण कर उसे शान्त और सुखी बनाता है, यह वह मधुर आहार है जो मनुष्य को सब प्रकार की तुष्टि और पुष्टि प्रदान करता है तथा सतत सेवन करने पर भी कभी अरुचिकर नहीं होता, यह वह पावन और प्रखर प्रकाश है जो केवल बाहरी अन्धकार को ही नहीं अपितु आन्तर अन्धकार को भी ध्वस्त कर ज्ञेय तत्त्व के प्रत्यक्ष दर्शन को सुलभ बनाता है। इसकी महत्ता और उपयोगिता अमित एवं अप्रतिम है। इसने संसार में अहर्निश पनपने वाले राग, द्वेष, ईया, अहंकार आदि के वृक्षों की जड़ का पता लगाया है, विश्व के विभिन्न अञ्चलों में धधकते सङ्घर्षानल के इन्धन को पहचाना है, मानव जाति की मानस-दुर्बलता और दुःखदायिनी जीवन-समस्याओं के मूल कारणों को परखा है, इसने जगत् की समस्त अप्रियताओं और आपदाओं के प्रतीकार के ऐसे साधन ढूंढ़ निकाले हैं जिनका प्रयोग कभी विफल नहीं हो सकता | जिस विचार, जिस चिन्तन, जिस अनुसन्धान के निष्कर्ष इन गुणों से हीन हैं उसका विस्तार कितना भी महान क्यों न हो, उसके अनुयायिओं की जागतिक स्थिति कितनी भी उन्नत क्यों न हो, पर वह दर्शन के पवित्र पद का अधिकारी नहीं हो सकता, भारतीय चिन्तन की विभिन्न धारायें जिस निष्कर्ष की ओर प्रवाहित हुई हैं उसमें यह गुण विद्यमान है अतः वह सब दर्शन पद की अधिकारिणी हैं। और इसीलिये भारतीय दर्शन का परिवार बड़ा विशाल है। जैन दर्शन इस परिवार का एक विशिष्ट सदस्य है जिसे विद्वान जैनाचार्यों ने चिन्तन, मनन, आलोचन, प्रत्यालोचन आदि अनुशीलन के विविध प्रकारों का आहार दे ऐसा परिपुष्ट और बलवान् , ऐसा समृद्ध और सम्पन्न बनाया है, जिससे वह अनन्त कालतक जिज्ञासु जनों का मनस्तोष करता रहेगा | जैन दर्शन की सबसे बड़ी विशिष्टता इस बात में है कि वह नितान्त निष्पक्ष दृष्टि सेPage Navigation
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