Book Title: Jain Nyaya Khand Khadyam
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chowkhamba Sanskrit Series

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Page 192
________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज डॉ. जगदीशचन्द्र जैन प्रस्तुत विशाल ग्रन्थ की सामग्री 5 भागों में विभक्त है : 1. जैन धर्म का इतिहास, 2 शासन-व्यवस्था, 3. आर्थिक स्थिति, 4. सामाजिक व्यवस्था और 5. धामिक व्यवस्था। इस प्रकार जैनागम-साहित्य में प्राप्त भारतीय समाज की तत्कालीन ऐतिहासिक स्थिति का सांगोपांग सुचारु प्रामाणिक वर्णन बड़ी रोचक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक कहीं से भी खोली जाय, छडोने को जी नहीं चाहता। प्रामाणिकता तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिये टिप्पणीरूप में मूल ग्रन्थों तथा प्रसंगों का सुस्पष्ट उल्लेख कर दिया गया है। तीन बहुमूल्य परिशिष्ट भी संलग्न हैं जिनमें साम्प्रदायिक घटनाओं, आचारों तथा नामो का विस्तृत व्याख्यात्मक विवेचन एवं स्वविषयक शब्द-कोष दिया गया है। अन्त में विस्तृत शब्दानुक्रमणिका भी दी गई है। पक्की जिल्द तथा कागज एवं मुद्रण आदि सभी मनोरम हैं। 25-00 प्रमेयरत्नमाला अनुवादक हीरालाल शास्त्री जैन आचार्य माणिक्यनन्दी ने परीक्षामुख की रचना सूत्र रूप में की थी। इसके ऊपर आचार्य प्रभाचन्द्र ने प्रमेयकमलमार्तण्ड, विस्तृत भाष्य के रूप में लिखा था। इसके पश्चात् लघु अनन्तवीर्य ने प्रमेयरत्नमाला नाम की टीका लिखी थी। यह छात्रों के लिए कुछ दुरुह थी। अतः इसके हिन्दी अनुवाद में मूल के एक-एक शब्द का रहस्य तथा कठिन स्थलों का मर्म बीच-बीच में विशेषार्थ देकर खोला गया है। हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सरल, सरस और हृदयग्राह्य है। 15-00 प्राप्तिस्थानम्-चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी-१

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