Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 223
________________ आहार से सम्बन्धित बयालीस दोषों के कारण एवं परिणाम ... 159 44. पिण्डनिर्युक्ति, 253 45. वही, 254 46. वही, 249 47. वही, 268 48. निशीथ भाष्य, 806-807 49. निशीथ भाष्य में मूलगुण और उत्तरगुण के सात-सात भेद किए गए हैं। गृहनिर्माण में दो मूल वेली, दो धारणा और एक पृष्ठवंश- इन सात वस्तुओं का प्रयोग मूलगुण सम्बन्धित होता है तथा बांस, कडण, ओकंपण, छत ढालना, लिपाई करना, द्वार लगाना और भूमिकर्म करना-ये सात चीजें उत्तरगुण से सम्बन्धित है। इनमें यदि छह प्रासुक हो और एक आधाकर्मिक हो तो भी पूतिदोष होता है। निशीथ भाष्य, 811 की चूर्णि पृ. 65 50. सूयगडो, 1/1/60-63 51. निशीथचूर्णि, भा. 2 पृ.66 52. मूलाचार, 429 53. पिण्डनिर्युक्ति, 272 54. वही, 273 55. वही, 273 56. वही, 274-75 57. स्थापनं साधुभ्यो देयमिति बुद्धया देयवस्तुनः 58. ठवणा भिक्खायरियाण ठविया उ। व्यवस्थापनं स्थापना। पिण्डनिर्युक्ति टीका, पृ. 35 आवश्यकटीका, भा. 2, पृ. 57 59. स्थाप्यते साधु निमित्तं कियन्तं कालं यावन्निधीयते इति स्थापना। प्रवचनसारोद्धार टीका पृ. 399 60. मूलाचार, 430 61. पिण्डनिर्युक्ति, गा. 277-279 की टीका, पृ.89-90 62. साधु का उत्कृष्ट चारित्र काल आठ वर्ष कम पूर्व कोटि जितना होता है। टीकाकार स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यदि कोई बालक आठ वर्ष की आयु साधु बना, उसका आयुष्य यदि पूर्व कोटि प्रमाण है और उसने यदि पूर्व में

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