Book Title: Jain Muni Ki Aahar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 281
________________ भिक्षाचर्या का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अनुसंधान ...217 • यदि बौद्ध परम्परा के परिप्रेक्ष्य में इस विषय पर मनन किया जाए तो वहाँ कई नियम जैन परम्परा के सदृश देखे जाते हैं जैसे कि 1. सादा एवं सात्त्विक भोजन करना। 2. अभक्ष्य, विकृति कारक, तामसिक आहार ग्रहण नहीं करना। 3. अकाल वेला (मध्याह्न के बाद) में भोजन नहीं करना। 4. खाद्य पदार्थों का संग्रह नहीं करना। 5. सामान्य रूप से भिक्षु-भिक्षुणियों को एक साथ भोजन नहीं करना। विशेष परिस्थितियों में सामूहिक भोजन कर सकते हैं। 6. भोजन का ग्रास न छोटा हो और न अधिक बड़ा हो। 7. आहार करते समय मुँह से आवाज न हो, गाल को फुलाए नहीं, भिक्षा पात्र को हाथ या होठ से चाटे नहीं। इस विषयक किंचिद असमानताएँ निम्नांकित हैं • बौद्ध भिक्षुओं के लिए बयालीस दोष रहित आहार ग्रहण करने का विधान नहीं है। • अभिग्रह या विशिष्ट प्रतिज्ञा पूर्वक भिक्षाटन करने का नियम नहीं है। • आहार के लिए काष्ठपात्र के अतिरिक्त अन्य प्रकार के पात्रों का उपयोग कर सकते हैं। • बौद्ध भिक्षुओं के लिए स्वयं के निमित्त बना हुआ आहार लेने का निषेध नहीं है जबकि जैन मुनियों के लिए औद्देशिक आहार ग्रहण करने का सर्वथा निषेध किया गया है।52 + वैदिक साहित्य में भिक्षाचर्या का निम्न स्वरूप उपलब्ध होता है जो तुलनात्मक दृष्टि से उल्लेखनीय है. दक्ष ने संन्यासियों के लिए चार प्रकार की क्रियाएँ आवश्यक कही हैं- 1. ध्यान 2. शौच 3. भिक्षा एवं 4. एकान्त शीलता।53 नारद के अनुसार यतियों के लिए छ: प्रकार के कार्य राजदण्डवत अनिवार्य माने गये हैं- भिक्षाटन, जप, ध्यान, स्नान, शौच और देवार्चन। इस परम्परा में भिक्षा स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं- शंखायन के अनुसार यति को बिना किसी पूर्व योजना या चुनाव के सात घरों से भिक्षा माँगनी चाहिए।54 बौधायन धर्मसूत्र के मतानुसार ब्राह्मण गृहस्थों के यहाँ भिक्षार्थ

Loading...

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328